2107-अकेलापन
1
अकेलापन
2
सुमन- मन
1-अकेलापन, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
संवाद
001-ई-पुस्तकें में प्रकाशित किया गया
2105-प्रकृति के सान्निध्य में
कमल कपूर
1
सृष्टिकर्ता की
सर्वोत्कृष्ट सुकृति
माँ-सी प्रकृति।
2
संतप्त मन
तो थाम लो दामन
माँ-प्रकृति का।
3
फूलों के मेले
हैं सजे अलबेले
चलो बाग़ में।
4
सौम्य सुमन
ज्यों इत्र की दुकान
खुली बाग़ में।
5
ओस से धुले
सुरभित टोकरे
शुभ्र मोगरे।
6
बाँटे महक
सुबह की सहेली
नर्म चमेली।
7
बेचते ख़्वाब
रंगारंग गुलाब
कवि के हाथ।
8
हो जाती सुखी
रवि-दर्शन कर
सूरजमुखी।
9
क्यों गुमसुम
टहनी पर बैठी
जवाकुसुम।
10
रात में फरें
भोर होते ही झरें
हरसिंगार।
11
ऋतु बसंत
शोभा शुभा अनंत
दिग्- दिगंत।
12
बारहमास
मन में मधुमास
रहे जीवंत।
13
सौंदर्य-पुंज
ताल-सरोवरों के
कमल-कुंज।
14
अबीरी छाँह
जुटाए पथिकों को
गुलमोहर।
15
हर पांखुरी
ज्यों स्वर्ण से निर्मित
पीत गेंदें की।
16
झरे जो तारे
छितरे फूलों पर
बनके मोती।
17
चाँद की चाँदी
और धूप का सोना
कभी न खोना।
18
देता अंबर
स्वर्ण-कलश नित
रश्मिरथी को।
19
धरा का रथ
नापे सृष्टि के पथ
थके-रुके न।
20
मीठी नदियाँ
और सागर खारे
संग हमारे।
21
शीत रातों को
शुद्ध चाँदी झरती
धुँध रूप में।
22
चाँद निहारे
झील में नहा रही
भीगी चाँदनी।
23
मीठी रागिनी
गाएँ जुगनू तारे
सुने यामिनी।
24
काढ़े प्रकृति
धरा की चुन्नी पर
फुलकारियाँ।
25
आओ मेघों में
बो दें सतरंगियाँ
जो रंगें मेह।
26
भोर के पाखी
गाएँ कबीर-साखी
झूमे पवन।
27
सुबह भोली
रेशमी मिठबोली
करे ठिठोली।
28
सर्द भोर ने
बुने श्वेत स्वेटर
धुँध-ऊन से।
29
सुख की दुआ
रंग रोशनी धूप
ख़ुशी के रूप।
30
ऐ मेरे खुदा
फूल मुर्झाएँ नहीं
दो इन्हें दुआ।
31
ताज़ा फूलों पे
लिखे नित्य कहानी
तितली रानी।
32
महके मन
पाये जब सुगंध
गीली माटी की।
33
महामारी भी
कभी हरा सकी न
प्रकृति माँ को।
34
धन्य हो जाते
कागज़ क़लम भी
लिख प्रकृति।
-0-
कमल कपूर,2144 / 9,फ़रीदाबाद-121006,हरियाणा
-0-
कमल कपूर में प्रकाशित किया गया
2104-स्वागत नव वर्ष
1-डा. जेन्नी शबनम
1.
दसों दिशाएँ
करती हैं स्वागत
नूतन वर्ष।
2
देकर दुःख
बीता पुराना साल
बेवफ़ा जैसे
आई द्वार पे
3
उम्मीद की किरणें
नया बरस।
4.
विस्मृत करें
बीते साल की चालें
मन के छाले।
5.
डर से भागा,
आया जो नव वर्ष
पुराना वर्ष।
6.
बीता बरस
चला गया निर्मोही
यादें देकर।
7.
याद आएगा
सुख-दु:ख का साथी
साल पुराना।
8.
वर्ष ज्यों बीता
वक्त के पिंजड़े से
फुर्र से उड़ा।
9.
बड़ा सताया
किसी को न बिसरा
गुजरा साल।
10.
आशा का दीप
लेकर आया साल
मन सजाओ।
-0-
2-डॉ सुरंगमा यादव
1
नव विहान
आ मिल पर तोलें
नभ के तले।
2
नूतन वर्ष !
अब कोई न बाँचे
दुःख की पाती ।
3
आशा का दीप
आओ आरती करें
नववर्ष की ।
4
दुःख- शमन
नववर्ष लेपन
आना लेकर।
5
ईश कृपा थी
अंधकार में सदा
ज्योति दिखी थी ।
6
झंकृत तार
नववर्ष गाएगा
नवल राग।
7
पुराने हुए
नववर्ष के संग
और भी हम।
8
नया पृष्ठ है
नया सृजन कर
ओ कवि मन!
9
हटाके उठा
समय का लिहाफ
नूतन वर्ष ।
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
मिटे संघर्ष
दुआ बनके आना
नूतन वर्ष।
2
दे गया बीस
सबको तनहाई
बना सौदाई।
3
मसीहा बन
उतरना ऐ वर्ष
फैलाना हर्ष।
4
फैला करके
कई भय शंकाएँ
बीता है साल।
5
ओ नए साल
मेट सब बवाल
अच्छा हो हाल।
6
जुदा था साल
यादों का सिलसिला
करे बेहाल।
7
नूतन साल
कर ऐसा कमाल
बने मिसाल।
8
नए बरस
प्रभु आन उबारो
कष्ट निवारो।
कृष्णा वर्मा, डॉ.जेन्नी शबनम, डॉ.सुरंगमा यादव में प्रकाशित किया गया
2103
1-डॉ.महिमा श्रीवास्तव
1
जाड़े की रात
सुलगते ख्वाबों का
अलाव तापें।
2
शीतल चाँद
शीत में न सता यूँ
जा डूब मर।
3
चुभती हवा
सूरज भी मद्धिम
थमा जीवन।
4
प्रीत बिसरा
ऊष्मा छीने साजन
बैरी हेमन्त।
5
ठिठुरे काया
विवश प्रतीक्षा में
बसंत आए।
-0-
पता: 34/1, Circular Road, near Mission compound, opposite Jhammu hotel,
Ajmer( Raj.)-3050001
Mail: jlnmc2017@ gmail.com
-0-
2-रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’
1
आँसू की बाढ़
तटस्थ उर-भूमि
पे दुख-झाड़
2
रश्मि-शृंगार
सन्ध्या-वधू देखती
सिन्धु-दर्पण।
3
गाढ़ा -सा रंग
प्रेम-छींटे जो पड़े
कभी न छूटे।
4
ठूँठ की आस
आ गले लिपटें वो
मासूम पात ।
5
प्यारा -सा नीड
रोती रही गौरैया
उजाड़ दिया।
6
घिरे बदरा
मन-मयूर नाचा
नेह ज्यूँ झरा
7
यादों की बाट
चलता चला जाता
मन प्रवासी ।
8
वो जब मिला
मन में प्रेम खिला
झरी सुगन्ध।
9
मन का कोना
झाँकता कौन है जो
पुकारे मुझे।
10
शीत-लहर
बरसा रही कोढ़े
काँपा गरीब ।
11
हाँ ये अलाव
देते हैं कब भला
शीत को भाव
12
धरा की छाती
चला कुहासा बज्र
पीर न जाती
13
खा शीत-कोड़े
आदमी ने पीठ में
घुटने मोड़े
14
जीवन युद्ध
स्वजन ही विरुद्ध
कैसे लड़ूँ मैं ?
15
जीवन जंग
कोई नहीं है संग
लड़ो अकेले!
16
उमड़ा वेग
बूँद-पैंजनी बाँध
नाचते मेघ
17
नेह-औषधि
मन के घाव हरे
पीते ही भरे।
18
जेठ की ज्वाला
बुझी, पी ज्यूँ धरा ने
बरखा-हाला ।
-0-
डॉ.महिमा श्रीवास्तव, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
2102
1-गंगा
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
चल पड़ी हूँ
सागर से मिलने
गंगा के संग।
2
जीवन गंगा
सागर यूँ ज्यों कजा़
अंतिम सत्य।
3
मुक्ति है देती
पाप पुण्य का भाव
गंगा है न्यारी।
4.
सब समाया
जीवन और मृत्यु
गंगा की गोद।
5.
हम हैं पापी
गंगा को दुख देते
कर दूषित।
6.
निश्छल प्यार
सबका बेड़ा पार
गंगा है माँ– सी।
7.
पावनी गंगा
कल-कल बहती
जीवन देती।
8.
बसा जीवन
सदियों का ये नाता
गंगा के तीरे
9.
गंगा की बाहें
सबको समेटती
भले हों पापी।
10
जीवन बाद
गंगा में प्रवाहित
अंतिम लक्ष्य।
11.
गंगा है हारी
वो जीवनदायिनी
मानव पापी।
12.
गंगा की पीर
गंदगी को पी-पीके
हो गई मैली
13.
क्रूर मानव
अनदेखा करता
गंगा का मन।
14
प्रचंड गंगा
बहुत बौखलाई
बाढ़ है लाई।
15.
गंगा से सीखो
सब सहकरके
धरना धीर।
16.
हमें बुलाती
कल-कल बहती
गंगा हमारी।
17.
गंगा प्रचंड
रौद्र रूप दिखाती
जब गुस्साती।
18.
गंगा है प्यासी
उपेक्षित होके भी
प्यास बुझाती।
19.
पावनी गंगा
जग के पाप धोके
हुई लाचार।
20.
किरणें छूतीं
पाके सूर्य का प्यार
गंगा मुस्काती।
-0-
2-सत्या शर्मा ‘ कीर्ति ‘
1
प्रेम के घाट
ठहरी शब्द -नदी
बहता मौन।
2.
गोधूली साँझ
संन्यासी ये आकाश
अनचीन्ही प्यास।।
3
झरता शीत
धरती आँचल में
बन आशीष।
4
चाँदनी रात
पग – पग उतरती
ओस की नदी।।
5
दूव नोंक पे
ढहर कर सोचती
नन्ही -सी ओस।।
-0-ईमेल – satyaranchi732@gmail.com
-0-
3-रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’
1
ओढ़े बैठी है
धरा सर्द चूनर
शीत आ गया?
2
दुख अकेला
भार मन का झेला
पूछा किसी ने ?
3
हवा ने चूमा
सुमन- मन देखो
इतरा के झूमा
4
राघव- सम
प्रिय तुम्हें छू तरी
मैं अहल्या-सी
5
आतंकी शीत
होंठ कँपकपाएँ
बोल न पाएँ
6
कँपा देता है
दिसम्बर बेदर्द
दया न करे
7
दुख- गठरी
हारा मन- अबोध
उतार फेंको।
8
राह भटके
पथिक आशा दीप
क्यों न जलाया?
9
मन-बालक
जिद ले बैठा रोए
कैसे मनाऊँ ?
10
छोड़ क्यों गए?
अनगिन सवाल
मुझे घेरते
11
नदी की धार
सींचे नन्हा चिनार
बढ़ता प्यार
12
ताकते गाँव
शहर रास्ता देखे
कहाँ है छाँव
13
स्मृति-सुमन
हरसिंगार-मन
महक-झरा
14
नेह-दीपक
नयनों ने जलाए
वो घर आए
15
शीतल छाँव
ज़िंदगी जिला देता
प्रीत का गाँव
16
मन-अम्बर
स्मृति-मेघ, नैनों से
रोया सावन
17
रिश्तों के जाल
सुलझे नहीं कभी
मचा बवाल
18
नदी का प्यार
पतझड़ हैरान
हँसे चिनार
19
स्मृति- सम्पदा
अपार यह कोश
घटता नहीं।
20
तुम्हारा रूप
नभ में खिली हो ज्यों
स्वर्णिम धूप
21
रिश्तों के पात
झरे औ सूखे मन
ठूँठ-सा पड़ा
22
अकेलापन
घेर ले छूटे ज्यों ही
यादों का साथ
23
यादों का हाथ
थामा तन्हाई रूठी
संग न आई
-0-
डॉ.जेन्नी शबनम, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू', सत्या शर्मा 'कीर्ति ' में प्रकाशित किया गया
2101
1-डॉ.सुरंगमा यादव
1.
घर में पोता
चॉकलेट की शॉप
भूलें न बाबा।
2.
आज चूड़ियाँ ।
भू से अंबर तक
तोड़े रूढ़ियाँ ।
3.
संचार क्रांति
झुग्गियाँ कर रहीं
गूगल-सर्च।
4.
व्यंजन-सी मैं
तुमसे मिला स्वर
पूर्ण पाकर।
5.
सौंपके जाती
इच्छा अपनी थाती
नई इच्छा को।
6.
नव ऊर्जाएँ
दौड़ें अँखियाँ मींचे
खाई न देखें ।
-0-
2-रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’
1
ओढे बैठी है
धरा सर्द चूनर
चैत आ गया?
2
दुख अकेला
भार मन का झेला
पूछा किसी ने ?
3
हवा ने चूमा
सुमन- मन महका
इतरा के झूमा
4
राघव सम
प्रिय तुम्हें छू तरी
मैं अहल्या
5
आतंकी शीत
होंठ कँपकपाएँ
बोल न पाएँ
6
कँपा देता है
दिसम्बर बेदर्द
रहम न खाए
7
दुख- गठरी
हारा मन- अबोध
उतार फेंको
8
राह भटके
पथिक आशा दीप
क्यों न जलाया?
9
मन-बालक
जिद ले बैठा रोए
कैसे मनाऊँ ?
10
छोड़ क्यों गए?
अनगिनत सवाल
मुझे घेरते
11
नदी की धार
सींचे नन्हा चिनार
बढ़ता प्यार
12
ताकते गाँव
शहर रास्ता देखे
कहाँ है छाँव
13
स्मृति-सुमन
हरसिंगार-सा मन
महक-झरा
14
नेह-दीपक
नयनों ने जलाए
वो घर आए
15
शीतल छाँव
ज़िंदगी जिला देता
प्रीत का गाँव
16
मन-अम्बर
स्मृति-मेघ, नैनों से
रोया सावन
17
रिश्तों के जाल
सुलझे न सुलझाए
मचा बवाल
18
नदी का प्यार
पतझड़ हैरान
हँसे चिनार
19
स्मृति- सम्पदा
अपार यह कोश
घटता नहीं।
20
तुम्हारा रूप
नभ में खिली हो ज्यों
स्वर्णिम धूप
21
रिश्तों के पात
झरे औ सूखे मन
ठूँठ-सा पड़ा
22
अकेलापन
घेर ले छूटे ज्यों ही
यादों का साथ
23
यादों का हाथ
थामा तन्हाई रूठी
संग न आई
-0-
डॉ.सुरंगमा यादव, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
2100
1-अनिता ललित
1
झूठी मुस्कानें!
ओढ़े बैठीं हैं कैसे
दर्द की तहें!
2
सोचा, खरीदें
ख़ुशियों की दुकान
घिसी चप्पलें।
3
टेका जो माथा
मन-चौखट पर
सुक़ून पाया।
4
भाव अनेक
उभरते मन में
खोएँ पल में।
5
दिल के तार
जिनसे जा जुड़ते
वही तोड़ते।
-0-
2-पुष्पा मेहरा
1.
ठिठुरी हँसे
बर्फ़ बिछौने पर
शीत चाँदनी।
2.
नभ के गाल
गुलाल मल हँसा
बालक रवि!
3.
खिले पलाश
या दहका जंगल
मन-भीतर।
4.
सूर्य सम्राट
शीत के महल में
निढाल पड़े!
5
धूप जेठ की
आ नश्तर चुभाती
बड़ी रोबीली!
6
श्वेत चाँदनी
हिम खंड छूकर
थिर हो पड़ी।
7
पग–पग पर
रोकते रहें शूल
खींचते फूल।
8
पल कपूर
उड़कर भी यादें
महका गए!
9
शीत की धूप
छत से लिपटती
जाने क्या बोली।
10
झील स्तब्ध
मछलियों के पीछे
लहरें दौड़ें।
11
नाचता ताल
मगन सारी मीन
मैराथन में!
12
नन्ही-सी कली
काँटों के बीच देख
बालिका चीखी।
13
शुभांगी भोर
दिनकर ने छुआ
गुलाबी हुई।
14
फटे बादल
दहाड़ा आसमान
सपने बहे।
pushpa.mehra@gmail. com
अनिता ललित, पुष्पा मेहरा में प्रकाशित किया गया
2099
1-नैनों की भाषा डॉ.पूर्णिमा राय
1
नैनों की भाषा
समझने लगा है
मन का मोर!!
2
जुबाँ खामोश
नहीं करती बातें
आँखें बोलतीं!!
3
द्वार खटका
नयनों के किनारे
चमके मोती!!
4
साँवरी धूप
पलकों से झाँकती
खिली मुस्कान!!
5
आँख न खुली
सपने में निमग्न
प्रिय मिलन!!
6
नैंनों का नीर
पूर्णिमा की रात में
बना सितारा!!
-0-
2- हवा जो चली-वीरबाला काम्बोज
1
माँगे लिहाफ़
पत्ते हैं ठिठुरते
हवा जो चली।
2
फैली चाँदनी
कैसे बीतेगी रात
तुम न साथ।
-0-
डॉ.पूर्णिमा राय, वीरबाला काम्बोज में प्रकाशित किया गया
अरण्य की लौ!
(“फ़्लेम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट”: एक पाठकीय प्रतिभाव)
डॉ. सुधा गुप्ता
डॉ. कुँवर दिनेश (मूलतः शिमला, हिमाचल प्रदेश निवासी,) द्विभाषी ― हिन्दी, इंग्लिश रचनाकार/हाइकुकार के रूप में ख्याति प्राप्त, समान रूप से दोनों भाषाओं पर पूर्ण अधिकार। मौलिक हाइकु-सृजन के साथ-साथ अनुवाद करना भी उन्हें प्रिय है।
सन् 2015 में “जापान के चार हाइकु सिद्ध” (बाशो, बुसोन, इस्सा, शिकि) शीर्षक से कुँवर दिनेश ने प्रत्येक के चयनित पचास हाइकु का अनुवाद हिन्दी में पुस्तकाकार प्रकाशित किया। प्रकाशन इतना मनोरम, कलात्मक, सुरुचिपूर्ण बन पड़ा कि हाइकु-प्रेमी जगत् (हिन्दी) ने हाथोंहाथ लिया; उक्त प्रकाशित पुस्तक ने अपार लोकप्रियता प्राप्त की।
नवीन प्रयोग से चमत्कृत करने वाले कुँवर दिनेश ने इसी वर्ष सन् 2020 में हिंदी भाषा के बत्तीस हाइकुकार के चयनित हाइकु (लगभग 150) का इंग्लिश भाषा में अनुवाद पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया, शीर्षक है “फ़्लेम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट” (“Flame of the Forest”)। शीर्षक ही आकृष्ट करता है ― ‘अरण्य की लौ’! आवरण पृष्ठ में प्रदीप्त लौ से अन्तरंग में छिपी लौ से परिचय पाने को हाइकु-प्रेमी उतावला हो उठता है…
आरम्भ में कुँवर दिनेश ने संक्षिप्त परिचय (Introduction) में हिन्दी हाइकु का इंग्लिश भाषा में अनुवाद करने में आई कठिनाई, समस्या और चुनौतियों का, तर्कपूर्ण ― भाषा की दृष्टि से दोनों के मूल अन्तर ― हिन्दी भाषा में वर्ण क्रम और इंग्लिश भाषा में syllabic meter में हाइकु रचना (जो सबसे बड़ी चुनौती है) जन्य असुविधा का स्पष्ट विश्लेषण किया है। मेरा विनम्र सुझाव है कि पाठक पहले इस आलेख को एकाग्रचित्त होकर पढ़े ― एक बार ― दो बार ― अच्छी तरह पूरी बात समझ लेने पर ही अनुवाद का वास्तविक आस्वाद-आनन्द उठा पाएगा!
कुँवर दिनेश का अनुवाद करते समय एक महत्त्वपूर्ण सूत्र: किसी भी हाइकु का अनुवाद करते समय इस बिन्दु पर ध्यान एकाग्र करना है कि हाइकु की मूल भावना संरक्षित रहे ― वह आहत न हो! यह सूत्र अनमोल है और यही है अनुवाद की सफलता की एकमात्र कसौटी।
प्रस्तुत पुस्तक में बाँए पृष्ठ पर हिन्दी हाइकु और दाँए पृष्ठ पर ठीक उसके सामने इंग्लिश अनुवाद दिया गया है जिससे तारतम्य बनाए रखने में सहज सुविधा हुई है। मेरे ज्ञान और निजी राय के अनुसार अनुवाद मूल हाइकु रचना के अधिकतम समीप बन पड़े हैं।
. . . हिन्दी के चयनित हाइकुकार, दिनेश के चिर ऋणी रहेंगे ― आभारी रहेंगे कि उनके हाइकु विश्व की प्रथम भाषा (प्रसार की दृष्टि से) इंग्लिश (English) में अनूदित हो कर अन्तरराष्ट्रीय / वैश्विक साहित्यिक झरोखे में जा बैठे हैं!
मैंने Flame of the Forest के मूल हाइकु तथा इंग्लिश भाषा में अनुवाद दोनों को अपनी शक्ति और सामर्थ्य भर पढ़ा, शीर्षक स्वयं में कई अर्थ, कई संकेत समेटे है, पाठक अपनी रुचि और मनोजगत् की ‘पकड़’ से उन संकेतों को समझने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है।
मेरे मन में एक विचार ने हाइकु का रूप लिया जिसे मैं दिनेश को अर्पित करती हूँ –
जगाने आया
किरणपाँखी हंस†
अरण्य की लौ!
(† सूर्य, दिनेश)
इस अमर्त्य ‘लौ’ को खोज निकालने वाले अनथक साधक, ज्ञान-योग में सतत ज्ञान-रत योगी दिनेश को शत-शत बधाई, हार्दिक शुभकामना!
―डॉ. सुधा गुप्ता
साकेत, मेरठ
रमा एकादशी, 11. 11. 2020
पुस्तक: Flame of the Forest: A Bilingual Anthology of Hindi Haiku in English Translation (फ़्लेम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट: हिन्दी हाइकु के इंग्लिश अनुवाद का द्विभाषिक संकलन); चयनकर्त्ता, अनुवादक एवं संपादक: डॉ. कुँवर दिनेश सिंह; प्रकाशक: गीतिका प्रकाशन, उत्तर प्रदेश; वर्ष: 2020; पृष्ठ: 108; मूल्य: ₹300 $10
1-भाषान्तर, 1-महत्त्वपूर्ण संग्रह, डॉ.कुँवर दिनेश सिंह, डॉ.सुधा गुप्ता में प्रकाशित किया गया
श्रेणी
- 001-ई-पुस्तकें
- 001-नेवा हाइकु[ नेपाल ]
- 001-सरस्वती सुमन -हाइकु -विशेषांक
- 001-हाइफन हाइकु विशेषांक -2013
- 002-हाइफन हाइकु विशेषांक-2018
- 003-अविराम साहित्यिकी हाइकु-विशेषांक
- 01-हिम
- 1-अकेलापन
- 1-आकाश
- 1-आलेख और विचार
- 1-उपवन
- 1-गुरुपरब
- 1-चाँद
- 1-चाय
- 1-जुगलबन्दी
- 1-दीपोत्सव
- 1-पर्यावरण-हाइकु
- 1-पर्वत
- 1-प्रेम
- 1-भाषान्तर
- 1-महत्त्वपूर्ण संग्रह
- 1-मेरी पसन्द
- 1-यादें
- 1-रंग-पर्व
- 1-रक्षाबन्धन
- 1-वर्ष गाँठ
- 1-वर्षा
- 1-वसन्त
- 1-संकलन
- 1-समीक्षायण
- 1-सर्दी के हाइकु [ विशेषांक ]
- 1-साँझ
- 1-सागर
- 1-हाइकु -संग्रह-भूमिका तथा अन्तर्वस्तु
- 1-होली
- 1.2 हाइकु -रत्न सम्मान
- 2014 का मूल्यांकन
- 85-हिन्दी-चेतना-हाइकु विशेषांक
- अंजलि
- अंजु गुप्ता
- अंश पटेल
- अंशु विनोद गुप्ता
- अंशु सिंह
- अंशु हर्ष
- अखिलेश कुमार
- अजय चरणं
- अजित महाडकर
- अतुल रॉय
- अनंत आलोक
- अनन्या भारद्वाज
- अनामिका शाक्य
- अनिता मंडा
- अनिता ललित
- अनिरुद्ध प्रसाद 'विमल'
- अनिरुद्ध सिंह सेंगर
- अनिल कुमार मिश्र
- अनिशा वी सिंह
- अनुपमा अनुश्री
- अनुपमा त्रिपाठी
- अनुराधा गुगनानी
- अन्वीक्षा श्रीवास्तव
- अभिनंदन गोपाल
- अभिषेक जैन
- अमन चाँदपुरी
- अमर साहनी
- अमित अग्रवाल
- अमिता
- अमितेन्द्र नाथ’अमित’
- अमिय मोहिले
- अमृता मंडलोई पोटा
- अरुण कुमार रुहेला
- अरुणा दुबलिश
- अर्चना माथुर
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