Posted by: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | जुलाई 22, 2022
कपिल कुमार
1
ओस
1
आँखों को मूँदे
दूब से गले मिली
ओस की बूँदे।
2
ओस को देखें
मेघों में छुप भानु
ज्यों गुप्तचर।
3
भोर में ओस
दूब से गले मिली
भर के जोश।
4
ओस ने लिये
दूब से सात फेरे
साँझ-सवेरे।
5
ओस ने किया
वसुंधरा का रुख
प्रेम की भूख।
6
दूब समेटे
धरा पे लेटे-लेटे
ओस की बूँद।
7
ओस ज्यों गिरी
दूब चूमने लगी
प्रेम से घिरी।
8
धूप ने छीनी
ओस ने भू को दी, जो
सुगंध भीनी।
2
नदी
1
सूखी कटेगी
क्या इक्कीसवीं सदी?
पूछती नदी।
2
नदी ने किया
दुःख ही दुःख फील
हजारों मील।
3
मेघों ने भरें
झरने फटाफट
नदी के तट।
4
नदी की गति
शहरों ने की अति
मन्द हो चली।
5
ऊँचे झरने
भू से प्रेम करने
तुंग से आएँ।
6
नभ से मेघ
बूँदे फेंक बढ़ाते
नदी का वेग।
7
मेघ ज्यों झरे
नदी, पोखर, झील
हो गए हरे।
8
मेघों ने खोलें
बन्द पड़े किवाड़
गाँव में बाढ़।
9
ज्येष्ठ की धूप
सुखाके चली गई
पोखर-कूप।
10
कुआँ-मुँडेर
बाट देखते हुई
वही पे ढेर।
3
उषा
1
रवि ज्यों जागा
बोरी-बिस्तर उठा
तिमिर भागा।
2
उषा उड़ाती
तम के परखचे
ज्यों शत्रु सच्चे।
3
तारों से मढ़ी
जुगनू की बारात
रात में चढ़ी।
4
झील में तारे
बच्चे पत्थर मारे
नाचते-गाते।
5
तम का अन्त
रवि, उषा ले आता
दिग्-दिगंत।
-0-
8 टिप्पणियां
कपिल कुमार में प्रकाशित किया गया
Posted by: हरदीप कौर संधु | जुलाई 17, 2022
विभा रश्मि
1
चंद्र , भास्कर
घोलें हैं रूपा , स्वर्ण
झील सिंगार ।
2
सोने के तार
झील -वधू ने धारे
ले लो बलैयाँ ।
3
भोर से साँझ
खगकुल किलोल
लावण्य झील ।
4
सर का पानी
ओढ़नी ओढ़े धानी
मीन हैं रानी ।
5
टूट आ गिरा –
नभ झील में तैरा
नील है घुला ।
6
नन्ही की आँखें
झील की ज्यों दो फाँकें
कौतुक भरी ।
7
झील- प्रवाह
लहरों के तारों पे
थिरका गीत ।
8
गाँव की झील
सदैव झिलमिल
रूप गर्विता ।
9
हम संपन्न
गर हों स्वच्छ झीलें
वादी हरित ।
10
नाव बाज़ार
पर्यटक आकृष्ट
गुल – बहार ।
11
न सुखा झीलें
नेहिल अमृतमयी
माँ हैं हमारी ।
12
धरा के वस्त्र
नद झील सागर
भरी गागर ।
Posted by: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | जुलाई 14, 2022
1-भीकम सिंह
1
कल-परसूँ
कर रहे हैं मेघ –
अब -बरसूँ ।
2
टहूके मोर
बरस पड़ने के
पक्के आसार ।
3
बरस पड़े,
सावन ने जो मेघ
ज़ेब से काढ़े।
4
फुहारें फेंके
खदेड़ा हुआ मेघ
पीछे को भागे ।
5
सुदूर कहीं
हाथ झाड़ता मेघ
ढूँढ़े ज्यों ठेक ।
-0-
2-कपिल कुमार
1
ले दूरबीन
अमा चाँद ढूँढती
ज्यों प्यासी मीन।
2
तारों को न्योता
नभ से ही लगाते
झील में गोता।
3
तम था डरा
उषा ने पाँव धरा
पहाड़ी पीछे।
4
नभ में तारे
अँधेरे में घूमते
तंग बेचारे।
5
तारे बेखौफ़
झील में ज्यों नहाते
नाचते- गाते।
6
बैठी है प्यासी
झील, धारा, नदियाँ
बारहमासी।
7
असंख्य बूँदें
बनी नदी विशाल
संघ की चाल।
8
किरणें फूटीं
भोर ने नदियों से
सोना है लूटा।
9
इंद्रधनुष
भू सतरंगी माला
धारण किए।