Posted by: हरदीप कौर संधु | अप्रैल 11, 2024

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प्रीति अग्रवाल 

1.

थिरकी बूँदें

नाच उठी प्रकृति

घुँघरू बाँधे!

2.

मायावी जग

अपने, परायों को 

जानूँ तो कैसे?

3.

हटीला मन

सब जानना चाहे

दृश्य, अदृश्य!

4.

भूलूँ तो कैसे

हर दर्द दिलाता

याद तुम्हारी।

5.

मान भी जाओ

जो कहा, अनकहा

जान भी जाओ!!

6.

तुम जो रूठे

बोझिल मन लिये

जी न पाऊँगी।

7.

मन की बात

जतन कर हारी

मन में रही।

8.

शब्दों के बाण

अंतस को बींधते

घाव रिसते।

9.

सभी खोजते

प्रेम, अपनापन

सभी अकेले।

10

पढ़ लेगा वो

सखी मूँद रखियो

नैन झरोखे।

11

ये कौन झाँका

नयन- सरोवर

डूबा रे डूबा!

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प्रतिक्रियाएँ

  1. बहुत सुंदर हाइकु।

    आदरणीया प्रीति जी को हार्दिक बधाई

    सादर

  2. बेहतरीन हाइकु , हार्दिक शुभकामनाऍं।

  3. बहुत सुंदर हाइकु…प्रीति जी को हार्दिक बधाई।

  4. अच्छे हाइकु, हार्दिक बधाई।
    शुभकामनाएँ।

  5. पत्रिका में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वेय का हार्दिक आभार!

    रश्मि जी, भीकम सिंह जी, कृष्णा जी और रमेश सोनी जी की मनोबल बढ़ाती टिप्पणियों के लिए हृदय से धन्यवाद!

  6. अंतस के भावो को सहज ढंग से अभिव्यक्त करते सभी हाइकु बेहतरीन।प्रीति जी को बहुत बहुत बधाई।

  7. बहुत प्यारे हाइकु प्रीति जी! एक से बढ़कर एक!

    ~सादर

    अनिता ललित

  8. बहुत सुंदर हाइकु।हार्दिक बधाई प्रीति जी।

  9. समय निकाल कर पढ़ने, सराहने के लिए शिवजी भैया, अनिता जी और सुरँगमा जी का हार्दिक आभार!

  10. एक से बढ़कर एक सभी हाइकु

  11. प्रीति जी को मर्मस्पर्शी हाइकु सृजन की दिली बधाई । बहुत सुन्दर।


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