हाइकु पढ़ने और लिखने का अभ्यास हमारी दृष्टि को विशाल बनाता है। नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के लिए काव्य है ही नहीं । संकीर्ण दृष्टि का चिन्तन हर कार्य में बाधक है ,चाहे वह साहित्य हो , चाहे जीवन । व्यापक दृष्टिकोण वाला करने वाला निरन्तर सीखता है ,कूप मण्डूक न सीखता है , न किसी की सीख को हज़म ही कर पाता है । सकारात्मक चिन्तन के कारण हम ज्यादा जीना सीखते हैं।
हाइगा जापानी पेंटिंग की एक शैली है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘चित्र-कविता’ यानी हाइकु की चित्रकारी । हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है ..
हाइगा =हाइ +गा
‘हाइ’ =कविता या हाइकु ‘गा’ = रंगचित्र (चित्रकला)
यह पेटिंग हाइकु के सौन्दर्यबोध पर आधारित है ।हाइगा की शुरुआत 17
शताब्दी में जापान में हुई।जापानियों के जन-जीवन में इसका बहुत प्रचलन है |
हाइगा में तीन तत्त्व होते हैं -रंगचित्र + हाइकु कविता + सुलेख
रंगचित्र चाहे हाइकु के बिम्ब न भी बता रहा हो ;लेकिन इन दोनों में घनिष्ट सबन्ध होता है । उस जमाने में हाइगा रंग – ब्रुश से बनाया जाता था | लेकिन आजकल इसे कलाकार फ़ोटोग्राफ़ तथा अन्य कला के साथ जोड़ते हैं । प्रसिद्ध हाइकुओं को पत्थरों पर उकेरकर स्मारक बनाने की कला को कुही कहा जाता है । यह कला शताब्दियों से प्रसिद्ध है |
शब्द हाइकु
मिले रंगचित्र से
बने हाइगा ।
‘चित्रों के साथ सीधे , प्रतीकात्मक रूप में( जैसे- ठूँठ , फूल या काँटे पर लिखा जाए), संकेत रूप में आना चाहिए। चित्र बहुत सजा -धजा हो, ज़रूरी नहीं। अभिव्यक्ति की सफ़लता और तालमेल ज़रूरी है।ऐसा न हो कि हाइकु पर चित्र भारी पड़े और हाइकु गौण हो जाए। कार्टून में देखिए-चित्र भले ही कलात्मक न हो , लेकिन तीक्ष्ण अभिव्यक्ति से ओतप्रो्त होता है। हिन्दी वालों का दुर्भाग्य यह है कि बिना जाने -समझे भेड़ चाल शुरू कर देते हैं। यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि हाइकु प्रभावशाली हो। कमज़ोर हाइकु को चित्र के टॉनिक से ताकत नहीं मिलेगी।चित्र को हाइकु की बैसाखी नहीं बनना चाहिए। अभिव्यक्ति का सम्प्रेषण बहुत ज़रूरी है।-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’ 23 अगस्त , 2015
(यह सामग्री बिना अनुमति के और हिन्दी हाइकु का सन्दर्भ दिए बिना उद्धृत न की जाए ! सम्पादक द्वय)
मेरे लिये यह एक नया तथा रोचक अनुभव है. कवि हृदय लैखकों के लिये यह एक सशक्त माध्यम है.
उमेश मोहन धवन
um.dhawan@yahoo.com
By: umesh mohan dhawan on सितम्बर 12, 2010
at 12:42 अपराह्न
मेरे लिये भी ये नया अनुभव है जो आपके मार्गदर्शन से इस विधा मे भी कुछ करने का अवसर मिला। धन्यवाद हिमाँशू भाई।
By: nirmla.kapila on नवम्बर 26, 2010
at 12:12 पूर्वाह्न
पथ के साथी हुए ,
हम भी
हिन्दी हाइकु परिवार में,
प्रेरणा मिली आप से अनुभवी साथियों से
नया अनूठा
मार्गदर्शन मिला जिन्दगी को
धन्यवाद हरदीप जी और हिमांशु जी ।
By: सीमा स्मृति on अक्टूबर 25, 2011
at 5:02 पूर्वाह्न
मैंने भी पिछले दिनों कुछ हाइकु लिखने का प्रयास किया था लेकिन अभी पूरी तरह से उसमे महारत हासिल नहीं हो पायी, क्योकि बिना गुरु के इसको पाना मुमकिन सा नहीं लग रहा। मैं आने वाले दिनों में आपको कुछ हाइकु भेजूँगा आप उस पर टिप्पणी कर उसमे अगर सुधार करना हो तो मुझे अवश्य बताएं ताकि मैं इस कला को आगे बड़ा सकू और दूसरे लोगो को भी इस विधा से अवगत करा सकूँ !
By: Deepak Kumar on जनवरी 16, 2012
at 11:27 अपराह्न
आपकी रचनाओं का स्वागत है ।
By: डॉ. हरदीप संधु on जनवरी 17, 2012
at 1:04 पूर्वाह्न
Choti , pyari magar Dhardar kavita ki shailly hi Haiku -ise lokpriye hote der nahi
By: satishkrt on मार्च 6, 2012
at 4:56 अपराह्न
हिन्दी हाइकु के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है, यह खुशी की बात है। हिन्दी हाइकु की खास बात है कि तीनों पंक्तियाँ अपने आप में स्वाधीन हों मगर तीनों जुड़ी भी रहें। एक ही पंक्ति को तोड़ कर तीन भाग में बाँट देना हाइकु नहीं। हाइकु में एक छवि उभर कर आये तो क्या कहने।
यह अभिव्यक्ति का एक सरल माध्यम है, तीन पंक्तियों में बहुत कुछ कहा जा सकता है। थोड़े से अभ्यास से कोई भी इस विधा में सृजन कर सकता है।
काम्बोज जी से अनुरोध है कि टिप्पणी में हाइकु पर अपने विचार भी रखें कि उन हाइकु में क्या ठीक है और क्या नहीं, जिससे लिखने वालों को मार्गदर्शन मिले।
By: Manoshi on मार्च 25, 2012
at 2:11 पूर्वाह्न
पहले तो मानोशी जी , हिन्दी हाइकु परिवार से जुड़ने के लिए आपको बधाई देना चाहेंगे । रही बात टिप्पणी की-पोस्टिंग से पहले रचनाकारों से जहां ज़रूरत होती है ,हम विचार-विमर्श करते रहते हैं , सुझाव भी देते हैं ।सुझाव देने के कुछ कड़वे अनुभव भी हैं। जिनमें काव्यानुभूति है ही नहीं , जब उनको मेल पर समझाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें नागवार लगता है । यद्यपि ऐसे रचनाकारों को हम धीरे -धीरे छो्ड़ते जा रहे हैं । कुछ अपने हाइकु प्रकाशन से पहले हमारी अलग से राय भी चाहते हैं और खुद खुछ भी पढ़ना नहीं चाहते ।हमारी भी कुछ व्यस्तताएँ हैं जिसके कारण सबकी रचनाओं पर टिप्पणी देना सम्भव नहीं होता कभी-कभार हम दोनों अपनी राय ज़रूर देते हैं । ‘हिन्दी हाइकु’ एक परिवार की तरह है अत: जिनको हम इस अवधि में अपनेपन से जोड़ सके हैं , उनके साथ निरन्तर विचार-विमर्श चलता ही रहता है । अपने अच्छे और समर्पित रचनाकारों से हम दोनों निरन्तर सम्पर्क में रहते हैं ।। साथियों से चन्दा बटोरकर कुछ भी छाप देने की प्रवृत्ति की हमने उपेक्षा की है; क्योंकि इन योजनाओं के चलते ऊल-जलूल लेखन को बहुत बढ़ावा मिला है । चन्दनमन और भाव-कलश इसके साक्षात् उदाहरण हैं,जिनके प्रकाशन के लिए किसी से कोई सहयोग राशि नहीं ली गई है । ‘हिन्दी हाइकु’ का एक मात्र उद्देश्य है अच्छे हाइकु को सामने लाना, चाहे वह कोई भी कहीं का भी हो , बस अच्छा रचनाकार हो । ताँका और चोका के लिए यही काम त्रिवेणी के माध्यम से भी कर रहे हैं ।
– डॉ हरदीप कौर सन्धु और रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
By: डॉ. हरदीप संधु on मार्च 25, 2012
at 4:07 पूर्वाह्न
इस पत्रिका को देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है,असीम शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
By: Neelam Dixit on मई 4, 2015
at 8:01 अपराह्न
इस पत्रिका को देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है,असीम शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
By: manju sharma on मई 9, 2015
at 8:19 अपराह्न
मैं हाइकू लेखन में नयी हूँ ,अभी मुझे बहुत सीखना है ,आशा है कि ये पत्रिका मेरी अच्छी मददगार बनेगी , पत्रिका के संस्थापकों और सभी हाइकुकार साथियों को नमन एवं बहुत बहुत शुभकामनायें …
By: manju sharma on मई 9, 2015
at 8:20 अपराह्न
हििन्दी कविता के लिए इस विधा द्वारा आज के यंत्र-युग की तीव्र गति की माँग पूरी हुई है ़
By: Gita Dhiman "Aabha ' on जुलाई 27, 2015
at 6:56 अपराह्न
sadar kamboj bhai v hardeep bahan.vidha ke bare mai sargarvit jankari ke liye aabhar.patrika ke liye anekon shubhechayen.
By: Vibha Rashmi on नवम्बर 24, 2015
at 10:56 अपराह्न
आपकी सभी रचनाएँ बहुत भावविभोर करने वाली होती हैं।सभी आदरणीय महानुभावों गुरुजनों को नमन।आप जैसे सुधिजनों के सामने नगण्य सा अस्तित्व रखने वाली मैं( प्रेरणा शर्मा)जब आपकी रचनाएँ
पढ़ती हूँ तो मन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो उठता है। टिप्पणी करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा लगता है।
आप लोगों की प्रेरणा से मुझे भी एक रचना लिखकर इस परिवार का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।कोटिश: आभार व नमन!
By: प्रेरणा शर्मा on जुलाई 20, 2016
at 11:18 अपराह्न
प्रिय बहन प्रेरणा , यह सबका मिला -जुला प्रयास है। हमारा उद्देश्य है अच्छे लोगों और अच्छे रचनाकर्मियों को एक मंच पर लाना और आपसी सद्भाव स्थापित करना । मैं और भाई रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ आप सब सहयात्रियों के साथ पूरे विश्व से जुड़े हैं। आपके इस अपनेपन के लिए आभार !! डॉ हरदीप कौर सन्धु, सिडनी ( आस्ट्रेलिया)
By: डॉ. हरदीप संधु on जुलाई 21, 2016
at 8:19 अपराह्न
बेहतरीन साईट है। रचनाकारों का संगम है।
By: Pramod Kharkwal on नवम्बर 8, 2016
at 2:50 पूर्वाह्न