2257-मैं तो हर मोड़ पर
25 जून, 2010 को हरदीप सन्धु ने अपने ब्लॉग ‘शब्दों का उजाला’ पर लिखा था-“मैं तो हर मोड़ पर…
इससे पूर्व मैं और डॉ भावना कुँअर 2009 से ही हाइकु पर कुछ काम करने का मन बना रहे थे। हम चाहते थे कि ‘तारों की चूनर’ जैसे गुणात्मक हाइकु लिखने के लिए कार्य किया जाए. इसे ईश्वरीय संयोग ही कहिए कि हम तीनों में हाइकु विधा को लेकर जो विचार साम्य था, उसने हमको परम आत्मीय का स्वरूप दे दिया। हिन्दी हाइकु के लिए एक प्रयास यह किया गया कि जो अच्छे कवि हैं, उनको हाइकु से जोड़ा जाए ताकि हाइकु में काव्य का समावेश हो, सिर्फ़ 5+7+5=17 का खिलवाड़ न हो, जो कि एक भीड़ बरसों से करके वितृष्णा पैदा कर रही थी। ‘हिन्दी हाइकु’ से भी कुछ (संख्या में बहुत कम) ऐसे ही ‘शॉर्ट कट’ तलाशने वाले लोग एक दो पोस्ट तक जुड़े फिर गायब हो गए. सुखद बात यह रही कि संवेदना, चिन्तन, कल्पना, भाषा पर गहरी पकड़वाले लोग अधिक रहे हैं, जिनमें ऐसे नाम भी थे; जो अन्य विधाओं के भी समर्थ रचनाकार हैं। इनमें प्रमुख हैं-अनिता ललित, अनीता कपूर, अनुपमा त्रिपाठी, अमिता कौण्डल, आरती स्मित, इन्दु रवि सिंह, उमेश महादोषी, उमेश मोहन धवन,
1-समीक्षायण, डॉ.हरदीप संधु, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' में प्रकाशित किया गया
2256
कपिल कुमार
1
रोशनी डूबी
उदास साँझ गाती
प्रतीक्षा-गीत।
2
रवि उतरा
धुँधली यादें लेने
क्षितिज पर।
3
विदग्ध मन
वसुंधरा पे सोया
साधु की भाँति।
4
प्यासे पक्षी, ज्यों
ढूँढ रहे नदियाँ
खोजा तुम्हें भी।
5
मृत्यु करती
औचक-निरीक्षण
ज्यों अधिकारी।
6
वसुधा-प्रीत
नभ ने भेजी बूँदें
प्रेम-संगीत।
7
नदी- प्रवाह
रास्ता स्वयं खोजती
लक्ष्य की चाह।
8
पर्वत ढक
सिर पर नाचते
बर्फ के कण।
9
नदी ने तोड़ा
पर्वत घिस-घिस
चट्टानी-दर्प।
10
वसुधा दुःखी
ज्यों फटा ज्वालामुखी
रक्त की धार।
11
दूध -सा गिरे
नदियों से मिलता
जल-प्रपात।
12
नदी बहती
ग्लेशियर पिघले
श्वेत बूँद- सा।
13
निर्जन पथ
हौसले से बढ़ती
एकाकी नदी।
14
रवि-किरण
सिंधु में ऐसे डूबी
प्रेम-मिलन।
15
उजास चाँद
नदियों में ढूंढता
चिर-मिलन।
16
नभ निहारे
भू पर बैठा चाँद
असंख्य तारे।
17
नभ से चाँद
सिंधु में गोते खाता
चाँदनी रात।
18
सिंधु में मोती
नभ ने ज्यों पिरोएँ
दिन में खोएं।
-0-असिस्टेंट प्रोफेसर, गणित विभाग,मिहिर भोज पी०जी० महाविधालय,दादरी, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
कपिल कुमार में प्रकाशित किया गया
2255-भोर
प्रो. विनीत मोहन औदिच्य
1
मंद समीर
विहग कलरव
सुहानी भोर
2
उगा सूरज
अलसाए नयन
हसीं सुबह
3
विदा रजनी
मुदित प्रातः काल
शुभ्र अंबर
4
प्रातः स्वागत
खिलखिलाती बाला
खोल वितान
5
विहसे पुष्प
तरंगित सरिता
उजली भोर
6
शुभ प्रभात
मंदिर जयघोष
हरि दर्शन
7
नवल स्फूर्ति
नव आत्मविश्वास
लाया प्रभात
-0-ग़ज़लकार एवं सॉनेटियर,सागर, मध्यप्रदेश
प्रो. विनीत मोहन औदिच्य में प्रकाशित किया गया
2254
1-अनिता मंडा
1.
मेघ ढोलिड़ा
आए बन पाहुन
नाचे बरखा।
2.
स्वर्ण-निर्झर
भीगती दुपहर
अमलतास।
3.
बाट जोहता
पीली चटाई बिछा
अमलतास।
4.
स्वर्ण-झूमर
डाल रहा घूमर
अमलतास।
5.
पीली कंदीलें
चाँदनी में सजाए
अमलतास
6.
हवा झुलाए
चटकीले झुमके
अमलतास।
7
बेचे झुमके
भरी दोपहरी में
अमलतास।
8.
सोने से लिखे
धूप का अनुवाद
अमलतास।
-0-
अवधी हाइकु- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
अरज करौं
गौरा! सातौं जनमु
उनकै वरौं!
2
उठइ हूल
तुम बिरान देस
सालहि सूल।
3
जबै दिखान
उइ ई दरै आति
जी हुलसान!
4
तोरि मिताई
कहूँ कचिया जाई
मोका जियाई।
5
जनौं ऊ प्रान!
जबहूँ अंकवारा
जिया जुड़ान।
6
तुम दीन्हिउ-
जौं नेहा निहछल
जिया लीन्हिउ!
7
मिटिगा दोषु
तुम भैंटिउ त भा
जी का संतोषु।
8
तुम्हरे बैन
जड़ाबति जिउ का
जौं फलालैन!
9
रहइ भोरा
तुम गमकाइउ
जीबनु मोरा।
-0-
अनिता मंडा, अवधी, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
2253
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
जीवन-मृत्यु
निरन्तर का खेल
मन हो, न हो।
2.
डटके खड़ा
गुलमोहर मन
कोई मौसम।
3.
काटता मन
समय है कुल्हाड़ी
देता है दुःख।
4.
काश! रहता
वन-सा हरा-भरा
मन का बाग़।
5.
मन हाँकता
धीमी– मध्यम-तेज़
साँसों की गाड़ी।
6.
मन का रथ
अविराम चलता
कँटीला पथ।
7.
मन अभागा
समय है गँवाया
तब समझा।
8.
मन क्या करे?
पछतावा बहुत
जीवन ख़त्म।
9.
जटिल बड़ा
साँसों का तानाबाना
मन है हारा।
10.
मन का रोगी
भेद न समझता
रोता-रुलाता।
11.
हँसे या रोए
नियति की नज़र
मन न बचे।
12.
पास या फेल
ज़िन्दगी इम्तिहान
मन का खेल।
13.
मन की कथा
समय पर बाँचती
रिश्ते जाँचती।
14.
न खोलो मन,
पराए पाते सुख
सुन के दुख।
15.
कठोर वाणी
कृपाण-सी चुभती,
मन घायल।
16.
लौ उम्मीद की
मन जलता दीया
जीवन-दीप्त।
17.
भौचक मन
हतप्रभ देखता
दृश्य के पार।
18.
मन का पंछी
लालायित देखता
उड़ता पंछी।
19.
मन में पीर
चेहरे पर मुस्कान
जीवन बीता।
20.
अकेला मन
ख़ुद से बतियाता
खोलता मन।
-0-
डॉ.जेन्नी शबनम में प्रकाशित किया गया
2252
1-पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’
1
सृष्टि आधार
साकार निराकार
राम अद्वैत।
2
हा! महाज्ञानी
शास्त्रार्थ में था जीता
अहं से हारा।
3
हाय! बुढापा
जिए, पी घूँट- घूँट
उपेक्षा विष।
4
हो कैंची ऐसी
काट सके बुढ़ापा,
अकेलापन।
5
बेटा बीमार
बस एक ही खेत
किसे बचाए?
6
कैसे बताऊँ
कोई शब्द ना ऐसा
दर्द है जैसा।
-0-उपमहानिदेशक (से.नि.),111/191 मध्यम मार्ग, मानसरोवर, जयपुर, राजस्थान, भारत।
purupurujaipur@gmail.com
-0-
2-रमेश कुमार सोनी
1
युद्ध के गाँव
गोली नहीं बताती
क्या वो भूखा था?
2
जय-नापते
अस्त्र-शस्त्र गूँजते
कब्रों के देश।
3
मृत्यु जो नंगी
जिंदगी हार जाती
दया बेमानी।
4
युद्ध न सुने
मित्र-रिश्तों की बातें
क्रोध हूँकारे।
5
कसूर पूछे
स्कूल-अस्पताल भी
युद्ध- गूँगा है।
6
बैरकें लौटीं
युद्ध क्षमा ना माँगे
विजेता-हारा।
-0-
पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’, रमेश कुमार सोनी में प्रकाशित किया गया
2251- हाइकु साहित्याकाश के वर्ण सितारे
डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
वर्ण सितारे( हाइकु-संग्रह):कवयित्री-ऋताशेखर मधु , प्रकाशक-श्वेतांशु प्रकाशन,एल-23, शॉप न-6, गली नं-14/15, न्यू महावीर नगर, नई दिल्ली-110018,पृष्ठ संख्या-132,मूल्य-250/-,संस्करण-प्रथम-2021
वर्ण सितारे ऋता शेखर मधु का प्रथम हाइकु-संग्रह है जिसमे बत्तीस शीर्षकों के अंतर्गत एक हाइकु-गीत एवं छह सौ हाइकु संकलित है। ऋता शेखर मधु लंबे समय से हाइकु लेखन में सक्रिय हैं, अंतर्जाल की दुनिया मे एक सशक्त रचनाकार के रूप उनकी पहचान है। हाइकु के अतिरिक्त लघुकथा,कविता एवं कहानी इत्यादि अनेक विधाओं में वे सृजनरत हैं। प्रकाशित कृति के रूप में वर्ण सितारे उनकी प्रथम कृति है।
हाइकु की इस कृति में ऋता जी ने अपने परिवेश में आए लगभग हर विषय को स्पर्श करने का प्रयास करते हुए उन पर हाइकु रचे हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी ने संग्रह में अनुभूतियाँ शीर्षक से शुभकामना संदेश में लिखा है-‘वर्ण सितारे की भावभूमि वैविध्यपूर्ण है। इसमे प्रकृति का अभिभूत करने वाला वैविध्यपूर्ण सौंदर्य है।’।.निःसन्देह विषय के स्तर पर ऋता जी के इस संकलन में पर्याप्त विविधता है। प्रकृति के विविध रूपों के चित्रों तथा लोक-संस्कृति और लोक-जीवन के बहुरंगी वर्णन के साथ ही राष्ट्रीयता है,चरखा है,तिरंगा और सरहद के चित्र हैं,पर्यावरण के प्रति चिंता है, दर्शन-अध्यात्म है, भक्ति है,रिश्ते-नातों की महत्ता है…और भी ऐसे अनेक विषय जो उनके दृष्टि-पथ में आए उन्होंने सभी को हाइकु में ढालने का प्रयास किया है।
यद्यपि हाइकु जापानी विधा है और इसमें भारतीय काव्यशास्त्र के मानकों या नियमों को मानने का कोई बंधन नहीं है, अनेक विद्वान तो हाइकु में अलंकार इत्यादि का निषेध करते हैं ,तथापि परम्परा के पोषक अनेक कवि हाइकु को भी भारतीय परम्परा के अनुरूप ही रच रहे हैं। ऋता शेखर मधु के वर्ण सितारे में भी अनेक स्थलों पर भारतीय काव्यशास्त्र की परपम्परा का निर्वाह दृष्टिगोचर होता है। भारतीय-काव्य- परम्परानुसार किसी भी काव्य-ग्रंथ का आरंभ गणपति वंदना से होता है। ऋता जी ने भी इस परम्परा का पालन करते हुए कृति के प्रथम पृष्ठ पर गणपति वंदना का हाइकु दिया है- दूर्वा सुमन/गणपति वंदन/हाइकु मन।
गणपति वंदना के पश्चात ज्ञान की देवी माँ शारदा की वंदना के साथ ही उन्होंने कृति का शुभारम्भ किया है,यह भी भारतीय काव्य-शास्त्र की परंपरा के अनुरूप है
–शुभ आरम्भ/ज्ञान की देवी के नाम/पृष्ठ प्रथम।
हाइकु मूलतः प्रकृति की कविता है अतः प्रकृति चित्रण समस्त हाइकुकारों का प्रिय विषय है, ऋताशेखर मधु भी इसका अपवाद नहीं हैं,शायद ही प्रकृति का कोई रूप उनकी लेखनी से अछूता रहा हो। उन्होंने प्रकृति के आलम्बन रूप को तो लिया ही है, साथ ही उसके सुंदर आलंकारिक चित्रों को भी चित्रित किया है। विविध ऋतुओं के चित्रण में भी ये विशेषता दृष्टिगोचर होती है। कहीं-कहीं प्रकृति का मानवीकरण है तो कहीं वह महत्त्वपूर्ण सन्देश भी देती है। प्रकृति के ये विविध रूप भी भारतीय काव्य-परम्परा के अनुरूप ही हैं।ऋता जी की कल्पनाएँ मौलिक हैं और बिम्ब अनूठे हैं,यथा उषा काल और चंद्रोदय के ये हाइकु उल्लेखनीय हैं जहाँ प्रकृति का मानवीकरण करते हुए अनूठे बिम्बों के साथ प्रस्तुत किया गया है-
बंदिनी उषा/तम पिंजरे तोड़ें/सूर्य रश्मियाँ।
शर्मीली कन्या/पत्तों के पीछे से/झाँकता चाँद।
ये बिम्ब सर्वथा नवीन एवं अनूठे हैं। इसी प्रकार प्रकृति के मानवीकरण एवं अभिनव बिम्बों के कुछ और भी हाइकु मन को मुग्ध करते हैं यथा-
हवा धुनिया/रेशे -रेशे में उड़ीं/मेघों की रुई।
बाग मोगरा/सुगंधों की पोटली/हवा के काँधे।
इंद्रधनुष/बुन रही है धूप/वर्षा की चुन्नी।
कहीं कहीं सर्वथा नवीन उपमान देखने को मिल जाते हैं, जैसे कि धुंध में वाहनों की हेड लाइट को बिल्ली की आँखों से तुलना करना-
हेड लाइट/काली बिल्ली की आँखें/धुंध के बीच।
इसी प्रकार यादों की लिट्टी के सिंकने का उदाहरण भी सर्वथा नवीन है।
जले अलाव/गप–शप में सिंकी/यादों की लिट्टी।
प्रकृति के आलंकारिक रूप के भी अनेक सुंदर हाइकु वर्ण सितारे मे देखने को मिल जाते हैं,प्रायः अनुप्रास,उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा अलंकारों के प्रयोग हुए हैं कहीं कहीं व्यतिरेक अलंकार भी उपस्थित है। उदाहरण हेतु उपमा,उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, व्यतिरेक के ये हाइकु देखे जा सकते हैं-
शिशिर भोर/मृग छौना सी धूप/भागती फिरे।
पलाश फूल/प्रहरी के हाथ मे/अग्नि का वाण।
चिट्ठी में फूल/मीठे दर्द का शूल/कहीं चुभा है।
भीनी महक/आम्र कुंज बौराया/इत्र शर्माया।
प्रकृति के बहुविधि चित्रों के साथ ही इस संकलन में लोक-जीवन,लोक-संस्कृति और लोक-परम्पराओं के सुंदर चित्र भी विद्यमान हैं।यथा ,लोक जीवन मे कौओं के विषय मे अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं,माना जाता है कि छत पर काग का बोलना प्रिय आगमन का संदेश होता है,इसके साथ ही किसी के सिर पर काग का बैठना अशुभ का सूचक भी है। पितृ पक्ष में कौओं के भोजन से पितरों के तृप्त होने की मान्यता भी है, इन लोक-मान्यताओं की अभिव्यक्ति हाइकु मे बड़े ही सहज रूप में देखी जा सकती है-
काक-सन्देश/प्रीतम आगमन/द्वार रंगोली।
शुभ-अशुभ/देता रहा सन्देश/काग सयाना।
वाहक काक/भावों का लेन-देन/पितर-पक्ष।
कृषक जीवन लोक-मान्यताओं,परम्पराओं एवं कहावतों पर बहुत कुछ निर्भर रहता है।कृषक जीवन के खेती के संदर्भ में प्रचलित मान्यताओं/ लोकोक्तियों को भी संग्रह के कुछ हाइकु में देखा जा सकता है –
रबी खरीफ/नक्षत्रों का हो ज्ञान/तूर की खान।
कृष्ण दशमी/आषाढ़ की रोपनी/धान-बाहुल्य।
चना की खोंट/मकई की निराई/रंग ले आई।
जहाँ तक लोक-उत्सवों की बात है तो होली,दीपावली,करवा-चौथ,रक्षा-बंधन इत्यादि प्रसिद्ध लोक उत्सव हैं जिनका वर्णन प्रायः हर कवि ने किया है।ऋता जी ने भी इन लोक-उत्सवों पर सुंदर हाइकु रचे हैं। इन हाइकु में परम्परा एवं लोक- उल्लास के समन्वित रूप को देखा जा सकता है-
कान्हा के हाथ/रंगीन पिचकारी/राधा रंगीन।
आधा चंद्रमा/कड़ाही में गुझिया/होली मिठास।
फलक हँसा/कंदील को उसने/चाँद समझा।
श्रावणी झड़ी/बहना ले के खड़ी/राखी की लड़ी।
कतकी चौथ/छलनी में चंद्रमा/प्रिय दर्शन।
वर्ण सितारे में ऋता जी ने एक ऐसे विषय को भी चुना है जिस पर शायद ही किसी हाइकुकार ने लेखनी चलाई हो वह विषय है-चरखा।चरखा लकड़ी का यंत्र मात्र न होकर आजादी के आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक भी है। इस बात को ऋता जी ने पहचाना और उस पर हाइकु भी रचे-
मन मे गाँधी/तन पर थी खादी/मिली आजादी।
देश मे चर्चा/स्वाभिमानी चरखा/बापू का सखा।
राष्ट्रीय भाव से ओतप्रोत हाइकु में तिरंगा-सरहद के हाइकु भी महत्त्वपूर्ण हैं-
नील गगन/भारत का तिरंगा/आँखों का नूर।
सरहद से/आया पी का संदेश/बावरी पिया।
चली बंदूक/सरहद थर्राया/भरे ताबूत।
वर्ण सितारे की भाषा में भी वैविध्य है, विषय के अनुरूप शब्द-चयन और तदनुकूल भाषा इन हाइकु में देखी जा सकती है,कहीं भाषा का प्रांजल रूप है, कहीं शुद्ध परिष्कृत खड़ी बोली के शब्द अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों के साथ घुले-मिले हैं। कहीं-कहीं लोकोक्ति और मुहावरों का भी प्रयोग है। परिष्कृत और प्रांजल भाषा का एक उदाहरण देखिए-
वर्ण मंजरी/मानसरोवर में/हाइकु हंस।
कृष्ण या पार्थ/जग कुरुक्षेत्र मे/दोनो पात्र मैं।
इसी के साथ मुहावरेदार भाषा देखिए-
दिखी दरार/खोते हैं रिश्ते सच्चे/कान के कच्चे।
विदा करे माँ/आँचल में बाँध दी/सीख पोटली।
प्रचलित अरबी-उर्दू के शब्दों का प्रयोग तो है ही साथ ही जहाँ आधुनिक-सन्दर्भों के हाइकुओं का सृजन हुआ है,इनमें भाषा के उन्हीं तकनीकी शब्दों को ग्रहण किया गया है जो प्रचलित हैं,यथा
–नभ – नक्षत्र/सप्तऋषि मंडल/सोशल एप।
गुम थे मित्र/व्हाट्सएप समूह/पुनर्मिलन।
विषैली हवा/पॉलिथिन का धुआँ/राह किनारे।
हवा में धुआँ/घबराए फेफड़े/आया एक्स-रे।
ऋता जी की दृष्टि मे उनके ये हाइकु साहित्य-गगन में चमकने वाले वर्ण सितारे हैं,ये बात उन्होंने संग्रह के प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर दी है-
छह सौ हाइकु/साहित्य गगन में/वर्ण सितारे।
निःसन्देह अलग-अलग आभा वाले ये वर्ण सितारे हिंदी हाइकु के साहित्याकाश को अपनी दीप्ति से सदैव आलोकित करते रहेंगे।
-0- Email-shivji.sri@gmail.com
1-समीक्षायण, डॉ.शिवजी श्रीवास्तव में प्रकाशित किया गया
2250-राधेश्याम जी के हाइकु
राधेश्याम ( 18 अप्रैल सातवीं पुण्यतिथि पर)
1
हाइकु- हंस
ज्ञान- सरोवर में
विहार करे
2
हिन्दी लोक में
हाइकु उतरा है
कौन रोकेगा
3
वसंत आया
हाइकु- द्वार खोले
नयन वोले
4
हिन्दी- सुमन
हाइकुवाला सूँधे
मन प्रसन्न
5
हाइकु यात्री
हिन्दी की सराय में
ठहर गया
6
हिन्दी कमल
हाइकु मन भाया
हिय लगाया
7
हिन्दी वसंत
हाइकु आँगन में
विहस गाए
8
हाइकु हंस
हिन्दी सरोवर में
चुगता मोती
9
हिन्दी हिरण
हाइकु वन देखे
छवि निराली
10
हाइकु हंस
हिन्दी मायाजाल में
कैसे आ फंसा
11
हाइकु- तीर
हिन्दी हृदय लगा
मधुर पीर
12
हाइकु पंखी
हिन्दी बगिया चूसे
रसाला रस
13
हिन्दी भवन
हाइकु सजी बैठी
प्रेमी विमुग्ध
14
हाइकु मोर
देख हिन्दी घटाएँ
नाचने लगा
15
हिन्दी की विन्दी
हाइकु वाला माथे
चम चमके
16
हिन्दी सदन
हाइकु नव वधु
साजे श्रंगार
17
हिन्दी गगन
हाइकु परी मग्न
भरे उडान
18
हाइकु माला
स्वर्ण कलश भरी
भारती पीती
19
चंद सी सोंहे
हिन्दी साहित्य नभ
हाइकु वाला
20
हाइकु संत
हिन्दी हिमालय में
ध्यान मगन
21
सुतन लघु
सुअंग भरा मधु
हाइकु जो है
22
हिन्दी झरोखे
बैठी हाइकु देखे
काव्य भवन
23
हाइकु सखी
सिन्धु पार से आई
हिन्दी अँगना
-0-सम्पर्क- kant.rama@gmail.com
राधेश्याम में प्रकाशित किया गया
2249
कपिल कुमार
1
नर्म हाथों से
ओस ने दूब छुई
ज्यों कोई रुई।
2
एक-दो क्षण
दूब से गले मिले
नीहार-कण।
3
धरती खुश
नभ से चिट्ठी लाया
इंद्रधनुष।
4
खुशी से भरे
नभ में सात रंग
इंद्रधनुष।
5
बजा बिगुल
मेघों से जल माँगे
धरा व्याकुल।
6
पाने सुकून
समुद्र से जा मिली
सूखी नदियाँ।
7
कचरा ढोएँ
बिना थके दौड़ती
नदियाँ रोए।
8
सूखी ज्यों नदी
बर्फ पिघला भेजे
ऊँचे पहाड़।
9
तुंग पे बैठी
अँगड़ाई ले रही
धूप में बर्फ।
-0-
कपिल कुमार में प्रकाशित किया गया
2248
पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’
1
नर्म धूप में
हा! यादों के स्वेटर
दादी बुनती
2
ना भागो पीछे
हैं, सुख की लहरें
मृगतष्णा -सी
3
गरीब खाता
रोटी से, गम ज्यादा
आँसू के साथ
4
मन सागर
जो मथे विवेक से
पाएगा रत्न
5
चाह की आँच
जो खिचड़ी पकाई
खानी पड़ेगी
6
वक्त बदला
गिरे झूठ के पेड
सत्य की जय
-0-
पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’, उपमहानिदेशक (से.नि.)
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ,111/191 मध्यम मार्ग,मानसरोवर, जयपुर
8094777793
email : purupurujaipur@gmail.c
पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’ में प्रकाशित किया गया
श्रेणी
- 00-अप्रैल-17-हाइकु विमर्श
- 001-अ-परिचय
- 001-अप्रैल 10, हाइकु विमर्श
- 001-ई-पुस्तकें
- 001-नेवा हाइकु[ नेपाल ]
- 001-सरस्वती सुमन -हाइकु -विशेषांक
- 001-हाइफन हाइकु विशेषांक -2013
- 002-हाइफन हाइकु विशेषांक-2018
- 003-अविराम साहित्यिकी हाइकु-विशेषांक
- 1-अकेलापन
- 1-आँख
- 1-आकाश
- 1-आलेख और विचार
- 1-उपवन
- 1-गर्मी
- 1-गाँव
- 1-गुरुपरब
- 1-चाँद
- 1-चाय
- 1-जुगलबन्दी
- 1-झील
- 1-दीपोत्सव
- 1-नदी
- 1-पर्यावरण-हाइकु
- 1-पर्वत
- 1-प्रतीक्षा
- 1-प्राण
- 1-प्रेम
- 1-भाषान्तर
- 1-भोर
- 1-महत्त्वपूर्ण संग्रह
- 1-मेरी पसन्द
- 1-यादें
- 1-रंग-पर्व
- 1-रक्षाबन्धन
- 1-रात्रि
- 1-वर्ष गाँठ
- 1-वर्षा
- 1-वसन्त
- 1-संकलन
- 1-समीक्षायण
- 1-सर्दी के हाइकु [ विशेषांक ]
- 1-साँझ
- 1-सागर
- 1-हाइकु -संग्रह-भूमिका तथा अन्तर्वस्तु
- 1-होली
- 1.2 हाइकु -रत्न सम्मान
- 2014 का मूल्यांकन
- 85-हिन्दी-चेतना-हाइकु विशेषांक
- प्रो. विनीत मोहन औदिच्य
- अंजलि
- अंजु गुप्ता
- अंजु घरबरन
- अंजु घरभरन
- अंश पटेल
- अंशु विनोद गुप्ता
- अंशु सिंह
- अंशु हर्ष
- अखिलेश कुमार
- अजय चरणं
- अजित महाडकर
- अतुल रॉय
- अनंत आलोक
- अनन्या भारद्वाज
- अनामिका शाक्य
- अनिता मंडा
- अनिता ललित
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