डॉ पूर्वा शर्मा
डॉ पूर्वा शर्मा
डॉ.पूर्वा शर्मा, हाइगा में प्रकाशित किया गया
कपिल कुमार, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू', विभा रश्मि में प्रकाशित किया गया
1
मुझे ना तोड़ो
जी, पूरा खिलने दो
अभी कली हूँ।
2
खिला यौवन
सतरंगी सपने
क्षण में बीते।
3
किससे बाँटे
दुख-दर्द अपने
ठूँठ बेचारे।
4
काम-कजरी
अंतस पर छाए
विवेक जाए।
5
मन का कोना
वहाँ बैठ सोचना
कौन अपना।
6
झरता पत्ता
फिर याद दिलाए
मृत्यु अटल।
7
दंभी बदली
कोई ढक ना सके
सूर्य अनंत
-0-
पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’
111/191 मध्यम मार्ग, मानसरोवर जयपुर
purupurujaipur@gmail.com
1-वर्षा, अशोक आनन, पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’ में प्रकाशित किया गया
1-पिता, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
कमला निखुर्पा में प्रकाशित किया गया
कमला निखुर्पा, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
सुदर्शन रत्नाकर में प्रकाशित किया गया
1-बाँटता आग!
-रश्मि विभा त्रिपाठी
1
ये लू लपट!
अरी बरखा तू आ
इसे डपट।
2
गरमी बढ़ी!
वर्षा रानी घुमाओ
जादू की छड़ी।
3
बाँटता आग!
सूर्य के हाथ जोड़े
दीन तड़ाग।
4
पढ़ी न जाएँ
जेठ में लिखे हवा
लू की कथाएँ।
5
लू-यातनाएँ
हवा के गर्म कोड़े
सहे न जाएँ।
6
जरा जी जाएँ!
जेठ में रच हवा
सौम्य-ऋचाएँ।
7
सूर्य झील का
मृदु-गात तपाए
कौन बचाए?
8
पेड़ों का साया
यदि सर से छीना
जलते जीना!
9
सूखा जा रहा
नदी, झील, झरना
प्यासे मरना!
10
बाहर ठूँठ
घर में गुलदस्ते
देव हँसते।
11
विदीर्ण होती
ओजोन की चादर
झेलो कहर!
12
न हो विमुख
ओजोन छिद्र जैसे-
सुरसा-मुख।
13
दशा बिगड़ी!
धरा ज्वर में पड़ी
संकट-घड़ी।
14
धरती माँ का
ग्लोबल वार्मिंग से
तपता माथा।
15
पड़े फफोले!
भू का तन न देखा
हो बड़े भोले।
16
तू एक दिन
मना पृथ्वी दिवस
हुआ उरिन!
17
रख सँभाल
ओजोन की छतरी
लगा गथरी!
18
रक्षा कवच
ओजोन का जो टूटा
जीवन रूठा।
19
बैठी उन्मन!
दिन-दिन सूखता
नदी का तन।
20
भोगोगे दुख!
भड़कती ओजोन
बा रही मुख।
21
बचा ले जल!
या आचमन कर
आँसू से कल।
-0-
अनिता ललित, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू', हाइगा में प्रकाशित किया गया
1
मेरे आँगन
प्रतीक्षा गीत गाए
प्रिय आ जाए।
मोरे अँगना
अगोरा गउनावै
पिय आवइ।
2
प्रिय! प्रतीक्षा
शीत- सी है चुभती
कब आओगे।
पिय! अगोरा
सीत अस सालहि
कबै अइहौ।
3
धरा के प्राण
अम्बर में बसते
किन्तु विलग।
भुई के प्रान
अम्बर माँ बसहिं
तहूँ नियार।
4
जब भी जागूँ
मन- प्राण समान
तुमको पाऊँ।
जब्हूँ जागहुँ
मन- परान सम
तुम्का पावहुँ।
5
घाटी- सी देह
नदी प्राण- सी बहे
गाती ही रहे।
घाटी-स देहीं
नदी प्रान-स बहै
गउतै रहै।
6
बहे है नीर
हुईं आँखें भी झील
झील के तीर।
बहइ नीर
आँखिंउँ हूँन झीलि
झीलि कै तीरे।
7
झील- सी हूँ मैं
देखो, खोजो स्वयं को
मेरे भीतर।
झीलि अस मैं
द्याखौ ट्वाहौ आपु का
मोरे भिंतरै।
8
यादों की बूँदें
मन- आँगन पड़ीं
सुगन्ध उड़ी।
सुधि कै बूँनी
ही- अँगना परिन
खुस्बू उड़िस।
9
आओ सजन
यादों के झूले पर
झूलेंगे संग।
आवहु कंत
सुधि कै झूला पैंहाँ
लगे झूलिबे ।
10
मन की पीर
बैठा है गाँव में ही
जमुना- तीर ।
मन कै पीर
बैठ गाँवइ मैंहाँ
जमुन तीर।
11
खिड़की रोई
दीवार से लिपट
मेरा न कोई।
खिर्की रोइसि
भितिया अँकवारि
मोर ना कौनि।
12
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
जबौ रोइसि
अकुलान ही मोरा
तुमका पावा।
13
धरूँ बाहों में
तेरी बाहें सजन
सर्दी गहन।
धरौं बाँहीं माँ
तोरी बाँहीं साजन
जाड़ु गहन।
14
छीन न लेना
एक ही लिहाफ है
तेरी प्रीत का।
छिना न लीन्हौं
एकै लिहाफ हवै
तोरी प्रीत कै।
15
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
नेह तुम्हार
जस घाम जाड़ा कै
अँगुरी फेरै।
16
बर्फ चादर
कली- सी सिमटती
देह की शोभा।
बर्फ़ जाजिम
कली अस सकिलै
देहीं कै सोभा।
17
पीपल छाँव
प्राण बसते जहाँ
कहाँ है गाँव।
पिपरा छाँही
प्रान बसइँ जहँ
गाँव ह्वै कहँ।
18
अलाव- सा है
सर्द रात पीड़ा में
प्रेम तुम्हारा।
कउरा अस
जूड़ राति पीरा माँ
नेहा तुम्हार।
-0-अनुवादक-विभा रश्मि त्रिपाठी
1-भाषान्तर, डॉ.कविता भट्ट, रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' में प्रकाशित किया गया
डॉ.सुरंगमा यादव में प्रकाशित किया गया