Posted by: हरदीप कौर संधु | फ़रवरी 29, 2012

धूप- पंखुरी


डॉ सरस्वती माथुर, जयपुर

1

चिरैया उड़ी

तेज आँधी से लड़ी

बिखरे पंख।


2

नींद नदी -सी 

लहरोंसा सपना

बहता रहा l

3

दूर है नाव

लहरातासा पाल 

हवा उदास ।

4

भीगे हैं तट 

पदचाप बनाती

बिखरी रेत l

5

नदी सा मन 

बहता लहरोंसा 

सागर हुआ ।


6

डूबती साँझ 

जीवन सी उतरी 

विदा के रंग

7

धूप- पंखुरी

खिली फागुन बन

बजे मृदंग

-0-

 


प्रतिक्रियाएँ

  1. प्रत्येक हाईकु बहुत सुन्दर….शुभकामनाएं

  2. सभी हाइकु अच्छॆ हैं…बधाई…।

  3. नींद नदी -सी
    लहरों-सा सपना
    बहता रहा l

    दूर है नाव
    लहराता-सा पाल
    हवा उदास ।

    नदी -सा मन
    बहता लहरों-सा
    सागर हुआ ।

    डूबती साँझ
    जीवन -सी उतरी
    विदा के रंग

    क्‍या खूब । डा सरस्‍वती जी आप का एक एक हाइकु हीरे मोती से पिरोया हुआ है । बहुत सुन्‍दर । बधाई बधाई।


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