समीक्षा :
यादों के पाखी- नीलमेन्दु सागर
विषयाधारित कविताओं का संग्रह निकालना कोई नई बात नहीं है,प्रेम-कविताएँ ,युद्ध-कविताएँ ,ॠतु विशेष संबंधी कविताएँ संकलन के रूप में प्राय: देखी जाती हैं। कई कवियों के व्यक्तिगत कविता-संग्रह/ हाइकु-संग्रह के भी आन्तरिक विभाजन विषय आधारित मिलते है; परन्तु एक विषय पर केन्द्रित हिन्दी के अधिसंख्य आतरुणवृद्ध रचनाकारों के निर्दोष और सार्थक हाइकु कविताओं का गुलदस्ता सजाना ओक्षाकृत नया और प्रशंसनीय प्रयास है। इस दिशा में “सवेरों की दस्तक ( नारी विषयक हाइकु-संग्रह ) के सम्पादन के साथ संभावनापूर्ण अगुआई डाँ0 सुधा गुप्ता और डाँ0 उर्मिला अग्रवाल ने संयुक्त रूप से की तो “यादों के पाखी” ने हाइकु- काव्याकाश में अपेक्षाकृत अधिकदूरगामी और दमदार उड़ानें भरी है। रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डाँ0 भावना कुँअर एवं डाँ0 हरदीप कौर सन्धु की उत्साही त्रिदलीय टीम ने प्रस्तुत संग्रह के रूप में देश-देशान्तर के (48) हाइकुकारों द्वारा खीचें गए जीवन्त यादों के 793 बहुरंगी –हाइकु चित्रों का एक विशिष्ट अलबम तैयार किया है, जो काव्य=प्रेमियों के लिए निश्चित रूप से अवलोकनीय और संग्रहणीय है।
जिन्दगी और जो कुछ हो। परन्तु विविध बहुरंगी यादों का सिल-सिला तो वह जरूर है। जिन्दगी को यदि आकाश मान लें तो स्मृतियाँ जगमगाते नक्षत्र और आकाश गंगा से कम नहीं । नक्षत्रों के बिना जैसे आसमान शून्य, रूपहीन एवं अर्थहीन है ,उसी प्रकार यादों के बिना जीवन निस्सार ही नहीं अकल्प्य भी है।यादें बहुरंगी –होती हैं जिन्हें वगीकृत करके हम सुखद और दु;खद कह सकते हैं,जो फूल और काँटों की भाँति जीवन –गुलाब के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य हैं ।ऐसा लग सकता है, कि सुखद यादें हमें अनुप्रेरित करती हैं और दु;खद यादें कुंठित करती हैं ;परन्तु सच यह है कि कटु-मधु दोनों यादें हमें आन्दोलित,संचालित और सम्पोषित करती रहती हैं। यादों के इन अजब-गजब रंगढंगों को ‘यादों के पाखी’ के हाइकुओं में भरपूर उकेरा और दर्शाया गया है। कहीं वे बीज, लता,गुलाब, गुलमोहर, फूल और काँटे प्रतीत होती हैं। तो कहीं दीप ,दीपबाती ,अगरबत्ती ,जुगनू, किरन और अंगार की तरह दहकती हैं।यादें कभी गाँव ,गली घर,झरोखे में जाकर बैठती-झाँकती हैं , तो कभी कारवाँ के साथ रेगिस्तानी सफर करती और पड़ाव भी ढूँढ़ती हैं।कभी पन्ने ,खत ,पोथी और दबे-सिकुड़े पुराने कागज के रूप में यादें देखी जाती है,। वास्तव में यादें ऐसे घुमन्तू पाखी ( migratory birds)हैं ,जो जीवन में कब-कहाँ किस रूप में चह चहाते –फड़फड़ाते दिख जाएँगे, कहना कठिन हैं।परन्तु यह तो तय हैंकि कोई लाख चाहे यादों से अपना पिण्ड नहीं छुड़ा सकता। वे ऐसी अजीबो -गरीब धरोहर हैं , जिसे न रखते बनता है और न ही छोड़ते बनता है । अनुभवी –हाइकुकार डॉ0 सुधा गुप्ता के शब्दों में- यादें भीगा कम्बल हैं। जिसे “ओढे बने न ही उतारे।”
‘यादों के पाखी’ की कुछ निजी विशेषताएँ हैं ; जो उसे सामान्य हाइकु- संग्रहों से भिन्न और बेहतर बनाती हैं।इस संग्रह के कुल 48 रचनाकारों में लगभग दो तिहाई महिलाएँ हैं; जिन्होंने हाइकु जैसी सप्त दशाक्षरी काव्य –विधा में प्रशंसनीय रचनात्मक- प्रतिभा का परिचय दिया हैं। कदाचित् लघुता में गुरुता का बोध कराना नारियों की मौलिक विशेषता है। यह अकारण और आकस्मिक नहीं है कि छाते , रूमाल, बैग ,चश्में आदि में लघुता और चुस्ती -दुरुस्ती उनकी पसन्द हुआ करती है। यादों के पाखी की दूसरी विशेषत है कि ‘याद’ शब्द की उबाऊ आवृत्ति के बावजूद इसकी 75% रचनाएं निर्दोष हाइकु छन्द में उच्च कोटि की हाइकु कविता हैं । पर ऐसे स्मृतिगन्धित हाइकु, जिनमें ‘याद’ शब्द चस्पाँ नहीं है , निश्चित रूप से उच्चतर हाइकु कविता हैं; क्योंकि उनके निहितार्थ ( काव्य -सत्य) कथित वर्णित न होकर ध्वनित हुए हैं , यथा-
1-आहट आते/उड़ती तितलियाँ/मेरे मन में ।(डॉ भगवत शरण अग्रवाल)
2-चिनार –वन/फिर से लगी आग / जी हुआ खाक (डॉ सुधा गुप्ता)
3-दीजिए बता/ भीगी हुई आँख को/ हँसी का पता (डॉ गोपाल बाबू शर्मा)
4-बीते बरसों/ अभी तन-मन में/ खिली सरसों (‘हिमांशु)
5-जिक्र तो आया/ यूँ हर गुफ्तगू में/ वह न आया (दविन्दर कौर सिद्धू)
6-पड़े फुहार/ पानी भरी तलैया/मन ता-थैया (सुशीला शिवराण)
7-मुड़ा-सा पन्ना/ कह गया कहानी /वर्षो पुरानी (डॉ भावना कुँअर)
8-भूल न पाया / जब-जब साँस ली / तू याद आया ( डॉ हरदीप सन्धु)आदि ।
यों तो किसी एक हाइकु-संग्रह में यादों पर लिखे सारे हाइकुओं को समेट पाना संभव नहीं है, न ही ऐसा करने का कोई प्रयास व्यावहारिक है, फिर भी, ‘ यादों के पाखी’ में हिन्दी हाइकु काव्यलोक के कई उज्ज्वल नक्षत्रों का नहीं दिखना खल जाता है,। सम्पादकों ने पुस्तक की भूमिका में संगृहीत रचनाओं की विशेताओं का समुचित उल्लेख किया है, अंतिम आवरण पृष्ठ पर संयोजक सहित संपादक त्रय के सचित्र परिचय भी छपे हैं ,जो उपयोगी है । यदि अन्य रचनाकारों के संक्षिप्त परिचय भी यथास्थान दिये होते तो प्रस्तुत संग्रह की ऐतिहासिकता और बढ़ जाती; लेकिन वर्तमान स्थिति में भी ‘यादों के पाखी’हिन्दी हाइकु काव्य-यात्रा में मील का पत्थर सिद्ध होगा इसमें संदेह नहीं , क्योंकि इन संगृहीत हाइकुओ में हिन्दी हाइकु काव्य की दिशा और दूरी के निर्भ्रान्त संकेत है। अत; यादों के 793-रंगबिरंगे पाखी को एक सुन्दर-से पिंजरे (संग्रह) में सजा।कर लोकार्पित करने के सम्पादकीय संकल्प और कौशल को नमस्कार एवं उत्साही सम्पादकीय टीम को हार्दिक बधाइयाँ!
-0-
यादों के पाखी(हाइकु-संग्रह): सम्पादक-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ भावना कुँअर , डॉ हरदीप सन्धु; संस्करण;2012; मूल्य :200/-पृष्ठ:136; अयन प्रकाशन 1/20 महरौली,नई दिल्ली-110030 |
समीक्षक- नीलमेन्दु सागर , नीलम कुंज , सधार(चाक पुनर्वास)।पो-छितरौर , बेगूसराय, बिहार-851129
बहुत ही उत्कृष्ट कोटि की समीक्षा ! पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा!
यादें चाहे जैसी भी हों… हमेशा दिल के बहुत निकट रहतीं हैं….! सुधा दीदी जी ने बहुत सही कहा… ‘भीगे कम्बल’ जैसी..!
सभी रचनाकारों व सम्पादक टीम को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ! 🙂
~सादर!!!
By: anita on जुलाई 25, 2013
at 12:38 पूर्वाह्न
वाह अति उत्तम .
सभी को बधाई .
By: manju gupta on जुलाई 25, 2013
at 3:09 अपराह्न
yadon ke pakhi ke samikshakar ko hardik badhai. Yaden, vastav mein kabhi
man kaa bojh badhati hain to kabhi halka karti hain. ye man ke band kapat mein sada hi rahti hain Pustak ki sameeksha hi padhne se man yaadon ke4 jharokhe khol baitha.
sampadak teem ko hardik badhai.Pushpa mehra
By: pushpamehra on जुलाई 25, 2013
at 3:44 अपराह्न
“यादों के पाखी “की बहुत सुन्दर उड़ान …बहुत बहुत बधाई और हार्दिक धन्यवाद आपको |
सादर !
By: jyotsna sharma on जुलाई 25, 2013
at 5:57 अपराह्न
बहुत अच्छी समीक्षा है…एक बार फिर से इस उत्कृष्ट संग्रह की याद ताज़ा हो गयी…| बहुत आभार और बधाई…|
By: प्रियंका गुप्ता on जुलाई 30, 2013
at 12:21 पूर्वाह्न
`यादों के पाखी’ की बहुत गहन और सारगर्भित समीक्षा की है आदरणीय नीलमेंदु सागर जी ने | संपादक मंडल को और सभी रचनाकारों को बधाई व शुभकामनाएँ …
By: ramadwivedi on जुलाई 30, 2013
at 3:06 पूर्वाह्न