Posted by: हरदीप कौर संधु | मई 3, 2012

धूप के खरगोश ( हाइकु-संग्रह)


युवापीढ़ी की समर्थ हाइकुकार डॉ. भावना कुँअर का प्रथम हाइकु संग्रह 2007 में प्रकाशित हुआ था । नया हाइकु संग्रह ताज़ातरीन 511 हाइकु के साथ ‘’धूप के खरगोश’’ नाम से पिछले सप्ताह आया है । भूमिका लिखी है हाइकु जगत की वरिष्ठ और यशस्वी हाइकुकार डॉ. सुधा गुप्ता जी ने । सुधा जी की लगभग 14 पुस्तकें हाइकु ताँका और चोका पर आ चुकी हैं । आज हिन्दी हाइकु परिवार की खुशी दुगुनी हो गई है ।

 डॉ. हरदीप कौर सन्धु -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

डॉ० भावना कुँअर की नवीन सुकृतिः धूप के ख़रगोश

        “कविता वह नहीं जो कही जाती है, बल्कि वह है जिसकी ओर संकेत किया जाता है। मेरा विचार है, सारे संसार की आलोचनाओं को निचोड़ डालें, तब भी उससे गहरी बात का पता नहीं चलेगा, जिसका ध्वनिकार को चला था।”

                                                        राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर

       आनन्दवर्धनाचार्य ने काव्य की आत्मा ध्वनिको घोषित करते हुए इस प्रकार परिभाषित किया-“जिस रचना में वाच्य विशेष स्वयं को तथा वाचक (शब्द) अभिधेयार्थ को गौण करके प्रतीयमान (व्यंग्य) अर्थ को प्रकाशित करते हैं, वह ध्वनि-काव्य है।”                      – ध्वन्यालोक                                                                                      

                                                                                                                                                     भारतीय काव्य शास्त्र की परम्परा में ध्वनि-सिद्धान्त का स्थान अप्रितम है, काव्य-शास्त्रियों एवं आचार्यों द्वारा वाद -विवाद, आलोचना-प्रत्यालोचना के पर्वत खड़े कर दिए गए किन्तु काव्य में ध्वनिकी सर्वोच्च सत्ता को नकारा नहीं जा सका। एक पुलक भरा आश्चर्य होता है जब दो भिन्न देशों, भिन्न संस्कृतियों और भिन्न विरासतों में जन्मी काव्य सम्बन्धी एक रूपता या चरम लक्ष्य की एकता हमारे समक्ष स्पष्ट होती है!

        जापान में जन्मा हाइकु और उसके श्रेष्ठ रचनाकार/ विद्वान/ सुधी विचारक/ श्रेष्ठ मानक-धारकों का एक मत से यही निष्कर्ष है कि हाइकु में सब कुछ नहीं कहा जाता, कुछ संकेत मात्र किया जाता है और शेष पाठक की ग्रहण शक्ति तथा भावक की कल्पना शक्ति पर छोड़ दिया जाता है यह भी कि हाइकु में सपाट-बयानी (अभिधा-प्रधान विवरण) से बचना चाहिए, हाइकु मातृ कथन‘, ‘स्टेटमेण्ट‘, ‘अभ्युक्तिया यथार्थ निदर्शननहीं है- हाइकु की प्रथम और अन्तिम शर्त उसका काव्यत्व हैकाव्यत्व अर्थात ध्वनि का चमत्कार उसकी व्यंजकता इस बिन्दु पर हाइकु सम्बन्धी अवधारणा भारतीय ध्वनि-सिद्धान्तके बहुत निकट जाकर खड़ी हो जाती है। काव्य का सौन्दर्य ध्वन्यात्मकता दोनों सिद्धान्तों में एक है।

        डॉ० भावना कुँअर एक समर्थ हाइकुकार हैं। उनका प्रथम हाइकु-संग्रह “तारों की चूनर” (प्र०सं०2007) मुझे पढ़ने को मिला सन् 2011 में सम्माननीय श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशुके सौजन्य से, एक ओर जहाँ मैंने श्री हिमांशुको इतना अच्छा हाइकु-संग्रह उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया, वहीं मुझे इस बात का काफ़ी दुःख भी रहा कि यह संग्रह इतने विलम्ब से- प्रकाशन के लगभग पाँच वर्ष बाद क्यों मिल पाया? डॉ० भावना कुँअर का प्रवासी होना और मुझसे अपरिचय होना भी इसके कारण हो सकते हैं अस्तु। “तारों की चूनर” एक सराहनीय संग्रह है और अपने प्रथम हाइकु -संग्रह के द्वारा ही डॉ० भावना एक परिपक्व हाइकुकार के रूप में स्थापित हो चुकी हैं; अन्तर्जाल पर उनकी सक्रियता देखते ही बनती है! भावना को प्रकृति से बेहद लगाव है, उनके हाइकु सरस, अर्थवान और सम्पूर्ण शब्दचित्रउकेर कर रख देने में सफल हैं।

         अब भावना लेकर आईं हैं अपना दूसरा हाइकु-संग्रह जिसमें 511 हाइकु हैं और प्रकृति की रम्य दृश्यावली के छवि-चित्रों की भरमार है! अपने प्रथम हाइकु-संग्रह “तारों की चूनर” से ही भावना अपना प्रकृति-प्रेम प्रमाणित कर चुकी हैं। प्रस्तुत संग्रह में भी प्रकृति-नटी की एक बढ़कर एक चित्ताकर्षक नूतन भंगिमाएँ यत्र-तत्र-सर्वत्र दिखाई पड़ती हैं कुछ चित्र-

  रंग-पोटली/ हाथ से ज्यूँ फिसली/ बनी तितली

 ढोल बजाते/ बैठ काले रथ पे/ बादल आते

 नन्हीं बुँदियाँ /ठुमुक कर आतीं/ नाच दिखातीं

 गेहूँ की बाली/ होकर मदहोश/ बजाए ताली

आँख-मिचौली/ लहरों से खेलतीं/ किरणें भोली

 पहने बैठी/ हीरे की नथुनी-सी/ फूल पाँखुरी

   हवा की अल्हड़ चंचलता और शोखी के क्या कहने-

 भागती आई/ दुपट्टा गिरा कहीं/ चंचल हवा

 छुड़ा न पाई/ कँटीली झाड़ियों से/ हवा दुपट्टा

        कमाल की बात है कि हवा जादूगरनीबन, हाइकुकार को बहकाकर किसी ओर लोक में ले जाती है

 बहका गई/ जादूगरनी बन/ देखो पवन

 ये पुरवाई/ वतन की खुशबू/ लेकर आई

        दूर परदेस में बैठी लाडो बिटिया को अपनों से दूर होने का ग़म सालता है वह आधुनिक निर्माण और नव्यता-प्रेमी परिवार-जन से याचना कर उठती है-

 गिराओ मत/ माँ की खुशबू वाले/ पुराने आले

        “तारों की चूनर” में भावना को गुलमौर ने बहुत रूपों में आकृष्ट किया था, यहाँ गुलमौर और अमलतास तो हैं किन्तु कचनार ने कुछ ज्यादा ही लुभाया है, कचनार की विविध भंगिमाएँ हैं, कहीं मुस्कुराता है, कहीं बतरस में डूबा, खिड़की चढ़ा राह देखता, दर्शन लोभी-मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ता,आँगन सजाता, भैया बनाता-हरि अनन्त हरिकथा अनन्ताकी भाँति कचनार की कथा का भी अनन्त है-

 बातें करते/ कचनार के फूल/ नहीं थकते

 राह निहारें/ बैठे खिड़की पर/ ये कचनार

 सजने लगी/ मंदिर की मूरत/ कचनार से

 मंदिर सीढ़ी/ चढ़ने को आतुर/ ये कचनार

 सजे आँगन/ कचनार फूलों से/ देहरी झूमे

 वृक्ष के तले/ कचनार फूल/ बिछौना बने   

        कचनार-गंध ने चाँदनी को नहला दिया, कौकिल को गाने को विवश कर, बयार को झुमा दिया-

 नहा रही/ कचनार गंध से/ आज चाँदनी

 कोयल गाए/ महके कचनार/ झूमे बयार

        धूप के कुछ उजले गदबदे खरगोश गोद में आ बैठे हैं, उनका कोमल स्पर्श एक सुखद गरमाई का सुकून भरा अहसास करा रहा है पर अरे! यह क्या? जरा-सी आहट और वे फुदक कर छिप गए जन्म लेता है एक बेहद ख़ूबसूरत हाइकु-

 वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे

सो हाइकु-संग्रह का नाम हुआ “धूप के खरगोश”।

        भावना हाइकु लिखती नहीं, रचती हैं वास्तव में हाइकु लिखने का विषय है भी नहीं; एक समग्र रचना-प्रक्रियाहै…. जैसे पान रचता है गुलाबी अधरों पर और उन्हें रक्तिम बना देता है, जैसे मेंहदी रचती है कोमल हथेली पर और उसे अपूर्व सौन्दर्यमयी लालिमा देती है; ठीक उसी तरह जब कोई मार्मिक अनुभूति कवि-मन में रच जाती है तो उसकी अर्थ-गौरव से भरी हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति एक सशक्त हाइकु के रूप में शब्दों का आकार ग्रहण करती है, भावना के हाइकु-सृजन की यही वह शिल्पगत विशेषता है जो मोहक है, विमुग्ध करती है, भावना सपाट-बयानी से बचती हैं, उनके हाइकु-काव्य में विशिष्ट ध्वन्तात्मकताहाइकु को सहज किन्तु प्रायः अनुपलब्ध धरातल पर ले जाकर खड़ा कर देती है, सीधे-सादे तथ्य कथन/ स्टेटमेण्ट से उन्हें परहेज़ है, भावना का एक बेहतरीन हाइकु है-

 लाल था जोड़ा/ आज़ादी से उड़ना/ भूलना पड़ा

        यह हर उस भारतीय कुँआरी के मन की कसक है जो सुर्ख़ जोड़े में सजकर अपनी चूनर की गाँठ किसी अनजान दुपट्टे के साथ बाँधी जाकर उसके पीछे-पीछे चल देती है और यूँ अपनी ज़िदगीं को होम कर एक नन्हा घरौंदा बनाने में जुट जाती है

       भावना थोड़ा सा कहती हैं, थोड़ा अनकहा छोड़ देती हैं- सहृदय भावक/ पाठक की अपनी कल्पना के लिये- एक उत्कृष्ट हाइकु के लिए उसका बहु आयामी होना आवश्यक है, वह बहुत कुछ संकेतित करे, कली के प्रस्फुटित होने की तरह उसकी पँखुरियाँ खुलती जायें-

  बेबस कली/ टूट पड़े भँवरे/ एक न चली

  नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/  टूटे पंख ले

 वृक्ष अकेला/ लगता नहीं अब/ सुरों का मेला

 धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने

 चबा ही डाली/ बेदर्द चिड़िया ने/ तितली प्यारी

 बनाए कैसे/ हवाओं पे बसेरा/ नन्हीं चिड़िया

सूखने लगे/ खलिहानों के होंठ/ बरसो मेघ

 जैसे उत्कृष्ट हाइकु इस संग्रह का प्राण-तत्व हैं जो पाठक को अपनी निजी रुचि, विवेक, कल्पना-शक्ति के अनुरूप अर्थ ग्रहण कराने में समर्थ हैं। भावना के इस नवीन हाइकु-संग्रह के परिचयार्थ कुछ संकेत दिया, “धूप के खरगोश” निःसंदेह एक रस से परिपूर्ण/  पठनीय/ सराहनीय/ संग्रहणीय श्रेष्ठ हाइकु-संग्रह है और लोकप्रिय होने की संभावनाओं से पूर्ण है। सहृदय पाठक इसे अपना स्नेह/ सत्कार दें यही मेरी शुभकामना है।

        बाँध पायल/ भावों के घुँघरु की/ झूमी कविता, के साथ झूमते हुए यही कहूँगी कि भावना की समर्थ लेखनी का सफ़र”, ‘उमर भरन सिर्फ़ चलता रहेवरन् द्रुतगति से  दौड़ता रहे और भावना नये-नये सार्थक, गरिमापूर्ण हाइकु-संग्रह हिन्दी हाइकु-संसार को उपहार रूप में देती रहें।

 फाल्गुनी पूर्णिमा

 08मार्च 2012 

                                         सुधा गुप्ता      ‘काकली‘/२०बी‍/२,      साकेत,   मेरठ 250003     ( उ०प्र०)         

                                                 दूरभाष-0121-2654749

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विमर्श 

जीवन एक खुला रहस्य है ;मगर हम जीवन भर बड़ी -बड़ी बातों को ढूँढ़ते ,उनका हल ढूँढने में लगे रहते हैं । हम जीवन की छोटी-छोटी बातों को अनदेखा कर यूँ ही दौड़े चले जा रहे हैं ; लेकिन जिनके पास इन छोटी बातों को देखने वाली विचित्र और विशिष्ट आँख है उनके लिए जीवन बन्द मुट्ठी नहीं बल्कि खुला हाथ है ।

            ऐसी ही कला डॉ. भावना कुँअर के पास है; जिनकी हाइकु कविताओं से इस कला को   अनुभव किया जा सकता  है । भावना जी के पहले हाइकु संग्रह ‘तारों की चूनर’ ने भी इसी प्रभाव को सिद्ध किया था । उनकी लेखनी का स्पर्श प्राप्त हाइकु जीवन के बड़े -बड़े रहस्य को  बहुत सहजता से खोलते हैं ।‘धूप के खरगोश‘ इस हाइकु संग्रह में भावना जी ने प्रकृति की खुशबू , रिश्तों की चाशनी में पगता मोह तथा जिन्दगी की यादों को सहजता से बाँधकर हाइकु कविता के विशिष्ट गुण का प्रमाण भी दिया है ।  

         ‘धूप के खरगोश’ हाइकु संग्रह का नाम पढ़ते ही पूरा संग्रह पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि प्रकृति के इन नए प्राणियों  और दृश्यों को हम भी तो देखें । पाठकों के मन में यही तड़प देखने को मिलेगी और उनके मन की परतों को खोलता चला जाएगा ये हाइकु संग्रह – यह मेरा विश्वास है

– डॉ.हरदीप कौर सन्धु , सिडनी , आस्ट्रेलिया

 www.hindihaiku.net 

डॉ भावना कुँअर ने अपने प्रथम हाइकु संग्रह ‘’तारों की चूनर’’ के द्वारा हाइकु -जगत् को अपने साहित्य-कर्म से केवल अवगत ही नहीं कराया ,वरन् यह सिद्ध भी कर दिखाया कि हाइकु जैसे लघु कलेवर के छन्द में भी गरिमापूर्ण काव्य प्रस्तुत किया जा सकता है । प्रकृति के अवगाहन से लेकर हृदय की अन्तरंग अनुभूतियों की सरस प्रस्तुति तक । वही आश्वस्ति ‘धूप के खरगोश ‘में भी रूपायित होती है। कुछ लोग पिछले 23-24 साल से पूरी हठधर्मिता और संकीर्णता के साथ  केवल संरचना (स्ट्रक्चर) को ही सर्वस्व समझकर कुछ भी तिनटंगिया घोड़ा दौड़ाकर इसे हाइकु के नाम से अभिहित कर दे रहे थे । डॉ सुधा गुप्ता या डॉ शैल रस्तोगी जैसे हाइकुकार कम ही नज़र आ रहे थे । युवापीढ़ी की इस सशक्त कवयित्री ने हाइकु को संरचना के प्रत्यय से आगे बढ़ाकर हाइकु की आत्मा ( स्पिरिट) तक पहुँचाया ।

इस संग्रह में जहाँ प्रकृति के मनोरम बिम्ब हैं , वही मर्मस्पर्शी अनुभूतियाँ भी पाठक को रससिक्त कर देती हैं । पहले पाठ में हाइकु के शाब्दिक धरातल तक पहुँचते हैं , लेकिन बार-बार पढ़कर जब चिन्तन  और अनुभव के धरातल पर उतरते ही पता चलता है कि लघुकाय छन्द में अनुस्यूत भाव बहुत गहरे है और विभिन्न आयाम लिये हुए है । बहुरंगी प्रकृति  हो या प्रेम की गहनता हो, परदु:ख कातरता हो या सामाजिक सरोकार हों ,  भावनात्मक सम्बन्ध हों या सांसारिक रिश्ते; डॉ भावना के कैमरे का फ़ोकस बहुत सधा हुआ और स्पष्ट नज़र आता है । कैमरा तो बहुतों के पास होता है पर उसे सही बिन्दु पर फ़ोकस करना सबके बस की बात नहीं ।हाइकु की बनावट और बुनावट के इन्द्रधनुषी अर्थों को खोलते हुए,जीवन के सूक्ष्म पर्यवेक्षण और उसमें अन्तर्हित अर्थ तक पहँच बिना जीवन की आँच में तपे नहीं होती ।पाठकों को रचनात्मक आत्मीयता से अभिभूत करने वाली भावों की वह आँच भावना जी में है , जिसकी पुष्टि ‘धूप के खरगोश संग्रह  करता है ।

 -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु

      


प्रतिक्रियाएँ

  1. डा॰ भावना जी की पुस्तक के बारे में जानना अच्छा लगा …. धूप के खरगोश के लिए उनको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

  2. भावना कुँवर जी की नई पुस्तक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं एवं बहुत बधाई।

  3. नई पुस्तक के लिए भावना कुँअर जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!!!

  4. पुस्तक की समीक्षा पुस्तक का पूरा परिचय दे गयी….सुन्दर भावों से भरी रचना के लिये आ भावना जी को बहुत बहुत बधाई….शुभकामनायें…!

  5. भावना कुंवर जी को बहुत बहुत बधाई” धूप के खरगोश” नाम ही इतना खुबसूरत दिया है भावनाजी ने की में इसे पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ ! आप ऐसे ही हाइकु की गरिमा को ऊंचाई पर ले जाती रहें ….इसी भावना और मंगल कामना के साथ पुन: बधाई!

  6. पुस्तक की समीक्षा पुस्तक का पूरा परिचय दे गयी….सुन्दर भावों से भरे हाइकु लिखने के लिये भावना जी को बहुत बधाई…और ….शुभकामनायें…आप भविष्य में और भी लिखती रहे…..

  7. `धूप के खरगोश’ जैसे उत्कृष्ट हाइकु संग्रह छपने पर भावना जी को हार्दिक बधाई…। पुस्तक परिचय इतना अच्छा है कि पूरी पुस्तक पढ़ने को मन ललचा गया…।
    मेरी शुभकामनाएँ और साथ ही आदरणीय काम्बोज जी और हरदीप जी को आभार कि उन्होंने हमें इस पुस्तक के खूबसूरत हाइकुओं की झलक दिखलाई…।

  8. डा० भावना कुंवर को नए हाइकु संग्रह धूप के खरगोश के लिए हार्दिक बधाई .समीक्षा से ही इसके सौन्दर्य की झलक तथा हाइकु काव्य की मूल विशेषताओं की जानकारी देने के लिए आभार .

  9. आप सबकी दिल से आभारी हूँ यूँ ही स्नेह बनाए रखियेगा…

  10. इन अलबेले, मोहक हाइकुओं और “धूप के खरगोश” के लिए भावना जी को बहुत बधाई…और ….शुभकामनाएँ…..

  11. भावना जी के ‘धूप के खरगोश’ हाइकु-संग्रह का नाम पढकर ही मधुर और सुखद अनुभूति होती है. सम्पूर्ण पुस्तक को पढ़ना अद्भुत होगा. भावना जी को आत्मिक बधाई.

  12. अनमोल कृति के लिए हार्दिक बधाई .
    समीक्षा में हाइकु उत्कृष्ट लगे .
    मंजु गुप्ता

  13. “धूप के खरगोश” के प्रकाशन हेतु भावना जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…..
    सादर/सप्रेम
    सारिका मुकेश

  14. सुशीला जी, जेन्नी जी,मंजु जी,सारिका जी आप सबका बहुत-बहुत आभार पुस्तक पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

  15. beautiful


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