Posted by: हरदीप कौर संधु | सितम्बर 14, 2010

तारों की चूनर


तारों की चूनर

तारों की चूनर (हाइकु कविताएँ ),रचनाकार –डॉभावना कुँवर

प्रकाशक  -शोभना प्रकाशन,123-ए,सुंदर  अपार्टमेन्ट,जी.एच.10,नई दिल्ली -110087

समीक्षक -डॉ ऋतु पल्लवी

हिंदी साहित्य आज नित्य नवीन विधाओं के क्षेत्र में पदार्पण कर रहा है-हाइकु कविताएँ भी उनमें से एक हैं जापान जैसे छोटे से किन्तु विकसित और नित्य प्रगतिशील देश में जन्म लेकर हाइकु ने विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाई है हमारे आज के आपा-धापी भरे व्यस्त जीवन में इसका लघु आकार जहाँ विशेष महत्त्व रखता है ,वहीं प्रकृति से जुड़ी इसकी पृष्टभूमि संवेदनशील मन को सम्बल प्रदान करती है

हिंदी में हाइकु कविताओं को प्रतिष्ठित करने एवं गति देने का श्रेय प्रोसत्यभूषण वर्मा जी को दिया जाता है।वर्मा जी के बाद हाइकु को आगे बढ़ाने वालों की एक लम्बी परम्परा हैइसी शृंखला में डॉभावना कुँवर का नाम तेजी से उभर के सामने आया हैडॉभावना कुँवर का हाइकु संग्रह ‘तारों की चूनर’ किसी प्रवासी भारतीय रचनाकार का सर्वप्रथम हिंदी हाइकु संग्रह है और इसलिए साहित्य जगत में अपनी विशेष उपस्तिथि दर्ज कराता हैलेकिन इसकी उपादेयता केवल इस गिनती तक ही नहीं है,बल्कि भाव और शिल्प की जो विशिष्ट प्रस्तुति इस छोटे से काव्य-संकलन में मिलती है वह इसे अनूठा-अनछुआ बनाती  है

इस पुस्तक को पढ़कर लगता है की इतने थोड़े से शब्दों में अनुभव का इतना वृहत्फलक प्रस्तुत कर सकना  वास्तव में आज के लेखकों के लिए एक चुनौती है सूक्ष्म मनः स्थितिओं से लेकर स्थूल प्रकृति वर्णन तक और अनचीन्हीं कल्पनाओं से लेकर समसामयिक समस्याओं तक, कवयित्री ने  जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को इसमें  समेटा हैमूल रूप से लेखिका एक भावप्रवणकवयित्री हैंपुस्तक की कई हाइकु कविताओं को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम छायावाद के भावुक रोमानियत की दुनिया में पहुँच गए हैं –

सुबक पड़ी

कैसी थी वो निष्ठुर

विदा की घड़ी

दूसरी ओर यथार्थवादी दृष्टिकोण से भी कवयित्री ने मानव मात्र के संघर्ष ,शोषकों के दमन और प्रशासन के शिकंजों की जकड़ को  स्वर दिया है-

नन्हीं तितली

बुरी फँसी जाल में

नोच ली गयी

विदेश में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों में अपने देश के लिए एक ‘नास्टेल्जिया’ होता है,भावना जी भी  अपने हृदय की गहराई से इसे महसूस करती हैं –

गया विदेश

होगी कोई उसकी

मजबूरी ही

इस संग्रह के परिप्रेक्ष्य में जो बात मेरे मन को सबसे अधिक प्रभावित करती है, वह है इसकी सहजता कवयित्री ने सायास कुछ भी नहीं कहा है ,जो कहा है -भावों के प्रवाह में निकला हैऔर उस प्रवाह को छिपाने के लिए या गूढ़ बनाकर प्रस्तुत करने के लिए भावना जी ने किसी कृत्रिमता की आड़ नहीं ली हैयहाँ न किसी दर्शन की गूढ़ता है, न अभिजात्य का आवरण-जो कहा है सीधे सहजशब्दों में कहा है संभवतः यही कारण है कि उनकी ये छोटी-छोटी कविताएँ भी हृदय की गहरी से गहरी परतों को खोलती चलती हैं और पाठक के अन्दर दबा हुआ कवि-मन मुखर हो उठाता हैलेकिन भावना जी का कवयित्री मन फिर भी संतुष्ट नहीं है उनमें कुछ और कहने की छटपटाहट है-

कहना चाहूँ

है छटपटाहट

कह ना पाऊँ

में समझती हूँ ये छटपटाहट बनी ही रहनी चाहिए ;क्योंकि यही साहित्यकार का पाथेय बनती है

‘अज्ञेय’ जी ने बहुत पहले कहा था -“शब्द ब्रह्म का रूप है इसे नष्ट मत करोकम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने की कला सीखो“हाइकु कविताएँ इन विचारों को अक्षरशः सत्य सिद्ध करती हैं

शिल्प की दृष्टि से हाइकु क्रमशः पाँच,सात और पाँच वर्णोंमें लिखा जाने वाला लघु छंद हैपरन्तु कवयित्री ने इन लघु छंदों में भी रस,बिम्ब और अलंकारों के अस्तित्व को न केवल बनाए रखा है बल्कि विशिष्ट उपमान योजना और प्रतीकात्मक बिम्बों द्बारा उनके सौन्दर्य को उभारा है‘गुलमोहर’ एक ऐसा ही प्रयोग है –

भटका मन

गुलमोहर वन

बन हिरन

प्रकृति वर्णन में मानवीकरण का प्रयोग प्रचुर मात्रामें हुआ हैभावना जी की भाषा में बौद्धिकता के साथ  काव्यात्मक कमनीयता और लय का जो मेल  मिलता है ,उसका आज केनए रचनाकारों में प्रायः अभाव है

पुस्तक की एक और विशेषता है इसकी चित्र योजना मुखपृष्ठ पर स्वयं भावना जी का चित्र और अन्दर प्रत्येक हाइकु के साथ श्री बीलाल के चित्र अपने आप में एक नया प्रयोग हैचित्र योजना में कहीं प्रतीकात्मकता है ;जिसमें आधुनिक काल की आड़ी-तिरछी रेखाओं का नियोजन किया गया है,तो कहीं विषयानुसार भावों को अक्षरशः चित्र में उतार दिया गया है

वस्तुतः ‘तारों की चूनर’ नामक यह हाइकु संकलन अपने नवीन कलात्मक कलेवर और वैचारिक ताने -बाने के साथ ऐसी सूक्ष्म संवेदनाओं से हमारा साक्षात्कार कराता है जिनसे कई बार हम स्वयं भी अनछुए रह जाते हैं

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ritup16@yahoocom


प्रतिक्रियाएँ

  1. भावना जी आपने यह ऐतिहासिक कार्य किया है , समय इसको एक दिन ज़रूर स्वीकार करेगा ।
    वीरबाला

  2. भावना जी को बहुत-बहुत बधाई…प्रवासी भारतीय होकर भी वे अपनी मिट्टी से जुड़ी हैं , इसके लिए भी वे प्रशंसा की पात्र हैं…।

  3. वीरबाला जी आप लोगों का स्नेह ही मुझे आगे लिखने की प्रेरणा देता है, आप लोगों का स्नेह मेरे लिए एक अमूल्य निधि है, तहे दिल से आपका धन्यवाद।

  4. प्रियंका जी आपकी भी आभारी हूँ जो आपने मेरे मर्म को पहचाना। आपके प्यार से भरे शब्द मुझे बहुत आगे जाने की प्रेरित कर गए। अन्नत गहराइयों से आपका धन्यवाद।

  5. भावना जी ‘तारों की चूनर’ को इस धरा पर लाकर आप ने बहुत ही बढ़िया कार्य किया है…..
    वाह! वाह! वाह !
    आप की कलम सदा ऐसा ही लिखती रहे !

  6. काम्बोज जी का तो जितना धन्यवाद किया जाये वह कम ही है। काम्बोज जी और संधु जी हाइकु के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। इसके लिए ये प्रशंसा के पात्र हैं।

    ‌‌ऋतु जी का तहे -दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने इस समीक्षा को लिखकर अपना अमूल्य समय दिया।

  7. बहुत-बहुत धन्यवाद संधु जी आपका कार्य भी सराहनीय है।

  8. भावना कुँअर ने हाइकु विधा को बहुत गम्भीरता से लिया है ।हिन्दी और संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन आपकी सोच में तो झलकता ही है , साथ ही भाषा की कोमलकान्त पदावली का चयन आपके हाइकु को दूसरों से अलग करता है । जीवन के अन्धड़ और सुहाने भोर का सामंजस्य आपकी रचनाओं में एक साथा पिरोया हुआ मिल जाएगा ।जो ज़मीन से जुडकर रचना कर रहे हैं , उनका स्थायीत्व रहेगा ही । मशीनी हाइकु लिखकर या खुदमुख़्तार बनकर अधिक दिनों तक साहित्य में नहीं टिका जाता ।रचनाकार जब अपने जीवन को छ्द्म आवरण में रखकर लिखता है तो रचना उसे नकार देती है ।भावना जी की यह पुस्तक निश्चित ही हाइकु लेखकों को आश्वस्त करती है । मेरी ओर से बधाई !डॉ हरदीप जी ने अपने विज्ञान-शिक्षण के साथ ‘हिन्दी हाइकु’ से नए और संभावनाशील रचनाकारों को जोड़ने का जो प्रयास किया है, वह रंग ला रहा है । केवल 11 सितम्बर को 108 लोगों ने इस ब्लॉग को देखा है । यह इन लोगों की बड़ी उपलब्धि है.

  9. मुझे तो इस पुस्तक की प्राप्ति का इन्तजार रहेगा.इस समीक्षा ने इन्तजार कठिन किया है मेरा…


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