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सम्प्रेषणीयता भाषा की शक्ति है, जिसका आधार है शब्द; वह शब्द, जो अर्थ की शक्ति से सिंचित एवं ऊर्जस्वित है। प्राचीन काल से अभिव्यक्ति का शास्त्रीय माध्यम काव्य रहा है। गूढ़ से गूढ़तम और मधुर से मधुरतम भाव एवं विचार काव्य के माध्यम से अभिव्यक्ति किए गए। जापानी साहित्य में हाइकु आकारगत लघुता के साथ अर्थ की गहनता और चिन्तन के विस्तार की दृष्टि से विश्व भर की भाषाओं में अपना स्थान बना चुका है। यह गौरव की बात है कि विश्व हिन्दी सचिवालय और भारतीत दूतावास ने 2021 में हाइकु के स्वरूप और वाचन को केन्द्रित करके अन्तर्जाल पर वैश्विक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें मुझे और हिन्दी हाइकु से जुड़े मेरे अनेक साथियों को अपनी बात कहने का अवसर मिला। इससे पूर्व कैनेडा के टैग टी वी ने सितम्बर 2018 में कुछ साथियों के हाइकु वाचन के साथ मेरा साक्षात्कार भी प्रसारित किया। हिन्दी हाइकु वेबसाइट 4 जुलाई 2010 से अब तक 117 देशों तक पहुँच चुका है, जिसके अब तक 2353 अंक निकल चुके हैं। आज तक इसके 5 लाख 2 हज़ार 162 हिट्स हो चुके हैं। आज हिन्दी-हाइकु का यह सबसे बड़ा संग्रह-स्थल है।
हिन्दी हाइकु में हिन्दी काव्य के अनुरूप सभी विषयगत और शिल्पगत सौन्दर्य को समाहित किया जा सकता है। कुछ ने तीन पंक्तियों और 17 वर्ण की इस लघु विधा को बहुत सरल समझ लिया। इसकी लघुता में ही भाव और सौन्दर्य की छटा समाई हुई है। अतः शब्द और अर्थ की गरिमा से युक्त इसकी साधना गहन चिन्तन, भाषिक संधान और जीवन के अध्ययन की माँग करती है। रूखी और प्राणहीन शब्दावली हाइकु या किसी भी काव्य-विधा को जीवन्त नहीं कर सकती।
मेरे सामने शिव डोयले जी का संग्रह है-शब्दों के मोती। मोती बनने की पूरी प्रक्रिया अनेक सोपानों से गुज़रती है, उसी प्रकार शिव डोयले जी के हाइकु भाव और अर्थ सौन्दर्य की विभिन्न छटाओं का दिग्दर्शन कराते हैं। हाइकु में प्रकृति का विशेष स्थान है, चाहे वह अन्तःप्रकृति हो, चाहे बाह्य प्रकृति। पहले बाह्य प्रकृति के कुछ अनूठे रूपों पर दृष्टिपात करते हैं। हवा की चोरी और शैतानी देखिए—दूर ले गई / चुराके पीत पात / शैतान हवा
बदली ठहरी मनमोहिनी सुन्दरी, मुग्धा होने के कारण उसे छत पर खड़े होकर ताँक-झाँक करना भला लगता है। केश का झटकना, उनसे बूँदों का टपकना में ‘झटकना’ और ‘टपकना’ क्रियाएँ बदली के मानवीकरण को और अधिक मनमोहक बना देती हैं-
-छत पर खड़ी / बदली झटके केश / बूँदें टपकें
छत पर खड़े होने का एक बोध यह भी है कि कोई उसके लावण्य को देखे और इसी व्याज से वह बदली भी किसी को नयन भरकर देख ले।
-खुली खिड़की / झट झाँकने लगी / भोर की धूप
उपर्युक्त हाइकु में खिड़की का खुलना और भोर की धूप का झट से झाँकना, एक मनमोहक बिम्ब सृजित करते हैं, जिसमें झाँककर किसी प्रिय को देखने का भाव भी निहित है।
शैल-शिखर पर जब किरणें पड़ती हैं, तो उनसे जो धूप का रंग चतुर्दिक् विस्तार पाता है, उससे शिखर भी निखर उठते हैं। –
-शैल-शिखर / किरणें भर लाईं / धूप का रंग
डोयले जी की चित्रात्मक भाषा हाइकु को और अधिक स्पृहणीय बना देती है। शिव डोयले जी की मानवीकरण की प्रस्तुति सहज होती है, सायास नहीं, आरोपित नहीं। सिन्दूरी साँझ का हौले-हौले से पग धरना और झील के दर्पण में चाँद-सा मुख देखना, ये दृश्य पाठक को अभिभूत कर लेते हैं— -सिन्दूरी साँझ / हौले-से धरे पग / रात के घर
-झील-दर्पण / रात रोज़ देखती / चाँद-सा मुख
तितली को आकर्षित करता पुष्प का सौन्दर्य, उसे अधरपान का निमन्त्रण देता प्रतीत होता है। कहीं भौंरे फूलों के छन्द में सँजोकर बासन्ती गीत रच रहे हैं। दूसरी ओर छोटी-सी चिड़िया है, जो ऊँची उड़ान भरने को आतुर है। चिड़िया की आँख भी छोटी-सी ही है; लेकिन वह पूरा आकाश नापने को तैयार है। उसकी आँख में पूरा आसमान समाया हुआ है। जीवन भी ऐसा ही है। हमें अगर कुछ करना है, तो आँख भले ही छोटी हो, उसमें आशान्वित करने वाले बड़े सपने सँजोने का प्रयास करना चाहिए-
-पुष्प-सुगन्ध / आकर्षित तितली / अधरपान
-फूलों के छन्द / भ्रमर लिख रहे / बासन्ती गीत
-भरी उड़ान / चिड़िया की आँख में / है आसमान
कहीं वर्षा की बूँदों का टप-टप का स्वर गीत बनकर उभर रहा है। इस हाइकु में ध्वनि बिम्ब का सौन्दर्य दर्शनीय है-
-पत्तों पर बैठी / टप-टप गा रही / वर्षा की बूँदें
प्रकृति का सौन्दर्य जितना नयनाभिराम है, उसकी उपेक्षा और क्रूर दोहन, उतना ही हृदय-द्रावक है। गाँव से आम और नीम की छाँव विलुप्त हो रही है। पगडण्डी वाला सबको छाँव देने वाला पीपल क्या कटा, वह अपनी अनुपस्थिति से सबको उदास कर गया।
–खोजता रहा / आम-नीम की छाँव / आकर गाँव
-पीपल कटा / उदास पगडण्डी / गाँव में चर्चा
नदी निर्जला हो गई। पानी केवल नयन-कोर में बचा है। बिना पानी के जीवन दूभर हो गया। आने वाले संकट की पदचाप डरा रही है—नदिया सूखी / नयन कोर पानी / जीना दूभर
काँटे तो फूलों के रक्षक हैं। यदि रक्षक के होते हुए चोरी हो जाए, तो कली का उदास होना स्वाभाविक है। यहाँ काँटे, फूल और कली के प्रतीक इस छोटे से हाइकु को अर्थगर्भित बना देते हैं—
काँटे के घर / हुई फूल की चोरी / कली उदास
कवि सौन्दर्य के आकर्षण से अछूता कैसे रहता! यहाँ दुविधा है कि चाँद और प्रिया में से किसको देखे! उसे तो दोनों ही प्रिय हैं—
रूप सलोना / चन्द्रमा को निहारूँ / या देखूँ तुम्हें
वह प्रिय जब परदेस में होता है, तो मन प्रिया के बिना बहुत उदास हो जाता है— चाँद निकला / मन हुआ उदास / परदेस में
जीवन पल-पल करके ऐसे ही बीतता जाता है। समय के साथ सब साथी छूटते जाते हैं। आगे का सफ़र नितान्त अकेले ही तय करना पड़ता है, यही जीवन-सत्य है—साथ तुम्हारे / चला हूँ सफ़र में / तन्हा ही रहा
कवि केवल सौन्दर्य तक ही सीमित नहीं। उसका ध्यान समाज की विद्रूपता पर भी जाता है, जहाँ बन्द कमरों के भीतर, पैने नाखून न जाने कितनी कलियों के अरमानों का खून करते हैं। ‘बन्द कमरा’ और ‘पैने नाखून’ का प्रतीकात्मक प्रयोग हाइकु की अर्थ-शक्ति का परिचायक है—बन्द कमरा / जिस्म को नोंचते / पैने नाखून
जीवन है, तो संघर्ष भी होगा। सकारात्मक सोच वाले मानव-मन में आशावाद का उजियारा हर अँधियारे को विलुप्त होने के लिए बाध्य कर देगा—चिराग़ जले / अँधियारे ने कहा- / यहाँ से चलें
जब तक जीवन है, तब तक आगे बढ़ते जाना है। जिस दिन साँसों का खेल खत्म हो जाएगा, उस दिन शरीर का यह पिंजरा खाली पड़ा रह जाएगा—साँसों का खेल / ख़ाली पड़ा पिंजर / तोता जो उड़ा
‘पिंजर’ शरीर का, तो ‘तोता’ प्राणों का प्रतीक है, जिसका डोयले जी ने बखूबी निर्वाह किया है।
शिव डोयले जी ने अपनी गहन अनुभूति और सरस अभिव्यक्ति से अभिमन्त्रित करके ‘शब्दों के मोती’ हाइकु-संग्रह को सार्थक और सम्प्रेष्य बनाया है। आशा करता हूँ कि यह संग्रह सुधी पाठकों को अवश्य रससिक्त करेगा।
-0- शब्दों के मोती की भूमिका से
नई दिल्ली, 27 अक्तुबर 2023
बेहतरीन हाइकु संग्रह के लिए शिव डोयले जी को बहुत-बहुत बधाई।
संग्रह की अति सुंदर, सारगर्भित समीक्षा के लिए आदरणीय काम्बोज जी की कलम को नमन।
By: Krishna Verma on मई 14, 2024
at 9:04 पूर्वाह्न
भूमिका पढ़कर इस संग्रह को पढ़ने की इच्छा बलवती हुई। बेहतरीन हाइकु पढ़ने को मिले। शिव डोयले जी को उनके हाइकु संग्रह की बधाई।
आपने अपने कीमती वक़्त में भूमिका लिखते हैं यह आपके हाइकु प्रेम का नायाब उदाहरण है।
इस पटल के लिए शुभकामनाएँ।
By: ramesh kumar soni on मई 14, 2024
at 12:03 अपराह्न
सारगर्भित समीक्षा
सर को ढेरों बधाईयां 🙏
By: Nanda pandey on मई 14, 2024
at 11:47 अपराह्न
शिव डोयले जी को बहुत-बहुत बधाई
On Mon, 13 May, 2024, 23:21 हिन्दी हाइकु(HINDI HAIKU)-‘हाइकु कविताओं की वेब
By: Kailash Bajpai on मई 16, 2024
at 1:13 पूर्वाह्न
वाह! संग्रह जितना सुंदर, समीक्षा भी उतनी ही मनभावन! आप दोनों को मेरा नमन!
By: प्रीति अग्रवाल on मई 18, 2024
at 12:25 अपराह्न
शिव डोयले जी की पुस्तक पर काम्बोज भैया के समीक्षात्मक विचार पढ़कर पुस्तक की उत्कृष्टता का पता चलता है। आप दोनों को हार्दिक बधाई। आभार।
By: Dr.Jenny shabnam on मई 29, 2024
at 12:56 पूर्वाह्न