Posted by: हरदीप कौर संधु | मई 5, 2023

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डॉ.सुरंगमा यादव

23-सुरंगमा यादव1
श्रमिक जन
बुनते हैं रेशम
नंगा बदन।
2
श्रम का लेखा
लाँघी न गई हाय!
गरीबी रेखा।
3
नया है दौर
प्रेम- रेत का टीला
बदले ठौर।
4
थम जाती है
मन की भटकन
ग्रंथों के संग।
5
सोशल हम
सोशल मीडिया पे
संबंध गुम।
6
तराश तो लें
पत्थरों में जज़्बात
भरें तो कैसे!
7
मिलते रोड़े
नदी को पग-पग
गति न छोड़े।
8
कोश में ढूँढूँ
सुंदरतम शब्द
‘माँ’ पे ठहरूँ।
9
हे मात-पिता!
हम हैं तुम्हारा ही
रूप विस्तार।
10
बेमेल ब्याह
ठूँठ संग कोपल
करे निर्वाह।
11
ताप-ओढ़नी
झुलसती धरती
जेठ की तल्खी।
12
जेठ-अलाव
माचिस न ईंधन
मारे लपटें।
13
अहल्या तरी
शिला में अग्नि बन
व्यथाएँ शेष।
14
रिश्तों में दूरी
नज़दीकियाँ बढ़ी
आनॅलाइन ।

-0-


Responses

  1. सोशल हम
    सोशल मीडिया पे
    संबंध गुम।….बहुत सुंदर,सभी हाइकु बेहतरीन।बधाई डॉ. सुरंगमा जी।

  2. अच्छे हाइकु के लिए बहुत बधाई

  3. बहुत सुंदर हाइकु।
    हार्दिक बधाई आदरणीया सुरंगमा जी को

    सादर

  4. बहुत सुन्दर हाइकु, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

  5. बहुत सुन्दर सभी हाइकु… हार्दिक शुभकामनाएँ सुरंगमा जी ।

  6. ‘प्रेम रेत का टीला’ वाह वाह
    अन्य हाइकु भी सुंदर।
    बधाई आपको

  7. ‘प्रेम रेत का टीला’ वाह अति सुंदर
    बधाई आपको

  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुरँगमा जी!

  9. एक से बढ़कर एक भावपूर्ण सुंदर हाइकु
    सामाजिक सरोकार से संबंधित सभी हाइकु बेहतरीन
    सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई सुरंगमा जी

  10. बहुत सुन्दर और सामायिक हाइकु, बधाई सुरंगमा जी।


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