समीक्षा
(लहरों के मन में-हाइकु संग्रह-सुदर्शन रत्नाकर)
समीक्षक – डॉ. पूर्वा शर्मा
हिन्दी हाइकु सृजन के इतिहास से गुजरने पर हम इस तथ्य से अवगत हुए बगैर नहीं रहते कि विगत डेढ़-दो दशकों में हिन्दी में हाइकु को लेकर सृजनात्मक विकास की गति में गुणात्मक वृद्धि हुई है। हिन्दी हाइकु के इस विकास दौर में पुरुष सर्जकों के साथ-साथ स्त्री सर्जकों की भी महती भूमिका रही है। सिर्फ़ हाइकु ही नहीं बल्कि ताँका, सेदोका, हाइबन जैसी जापानी विधाओं में सृजन कर हिन्दी साहित्य को और ज्यादा समृद्ध करने के साथ-साथ उसे नूतनता और वैविध्य प्रदान करने वाली हिन्दी की प्रमुख कवयित्रियों में सुदर्शन रत्नाकर जी का नाम शामिल है। हिन्दी की इस वरिष्ठ हाइकु कवयित्री के हाइकु संसार में ‘तिरते बादल’, ‘मन पंछी-सा’ इन दो संग्रहों के पश्चात् हाल ही में (2022) तृतीय संग्रह ‘लहरों के मन में’ प्रकाशित हुआ। 144 पृष्ठीय इस संग्रह में 1) प्रकृति के संग 2) रिश्तों के रूप एवं 3) विविध रंग शीर्षक से कुल 763 हाइकु संग्रहित है।
बगैर ज़ुबाँ के भी कितना कुछ कहती रहती है ये प्रकृति, बशर्ते मनुष्य में उसे सुनने-समझने की क्षमता होनी चाहिए। सागर की मचलती लहरों के मन में क्या है, वे क्या कहना चाहती हैं? बरखा की बूँदें कौन-से राग सुनाना चाहती हैं? ठंडी पुरवाई किसके किस्से-कहानियाँ कह रही है? सूर्य की गुलाबी किरणें धरा को चूमने को क्यों लालायित रहती है? ऐसे अनेक प्रश्न हैं और इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रकृति के करीब जाना आवश्यक है। एक ऐसी प्रकृति प्रेमी है – वरिष्ठ कवयित्री सुदर्शन रत्नाकर जी। उनके इसी प्रकृति प्रेम का परिणाम है उनका नवीनतम हाइकु संग्रह – ‘लहरों के मन में’। प्रकृति को पूरी तरह से समझ पाना संभव नहीं, लेकिन प्रकृति के मन की कुछ बातों को-कुछ रहस्यों को जानने-समझने का कवयित्री का प्रयास प्रस्तुत पुस्तक में बखूबी दिखाई देता है। इसमें प्राकृतिक सौन्दर्य, प्रकृति के विविध रूपों का बखूबी चित्रण हुआ है। कवयित्री के शब्दों में – “प्रकृति हमें बुलाती है, पुचकारती भी है। मैंने उसके पास जाने का प्रयास किया है। उससे मिलने वाले आनंद को अनुभूत किया है। बाल रवि को निहारा है, उसकी उगती किरणों ने बाँधा है मुझे। सागर की लहरों ने पुकारा है। चाँद की शीतलता को महसूस किया है। फूलों को निहारते हुए उसके विभिन्न अद्भुत रंगों ने मुझे अचरज में डाला है। फूल-पत्तों को छूते हुए लगा कि वे बतिया रहें हैं।” (‘कुछ अपनी बात’ से, पृ. 7)
प्रकृति को लेकर कवि एवं कविता की इस तरह की संवेदना की बात चले और सुमित्रानंदन पंत की विख्यात कविता ‘मौन-निमंत्रण’ का स्मरण न हो, यह संभव ही नहीं।
पुस्तक का शीर्षक यह कहने में समर्थ है कि प्रकृति चित्रण ही संग्रह का प्रधान का स्वर है।
रवि ने झाँका
लहरों के मन में
उमड़ा प्यार।
सुदर्शन रत्नाकर प्रकृति से गपशप करते हुए कवयित्री का हृदय कह उठता है –
भीगी हवाएँ / चंचल वो लहरें / मुझे बुलाएँ। [44]
जल-कन्याएँ / सागर से हैं लातीं / भेंट में मोती। [47]
दूध कटोरा / हाथ लिये घूमती / रात चाँदनी। [30]
फाल्गुनी हवा हो या शीतल छाँव, हिम के फाहे हो या पिघली हुई बर्फ इन सभी की ओर कवयित्री की दृष्टि पड़ी है। कवयित्री का सूक्ष्म पर्यवेक्षण उनके हाइकु में नज़र आता है। कवयित्री का प्रेम महज़ सागर, लहरों आदि से ही नहीं है । कवयित्री कहीं पर चंपा-चमेली को श्वेत वस्त्र पहने देखती है तो कहीं फूल के शर्माने और कलियों-भँवरे के हँसने को अपने शब्दों में पिरोकर पाठक के मन-मस्तिष्क में सुंदर बिम्ब उभारने में सफल हुई हैं। मनभावन बिम्ब देखिए –
डूबता सूर्य / नारंगी घुला रंग/ लजाया नभ। [74]
अक्स चाँद का / लिपटा है झील से / हुए हैं एक। [273]
एक ओर जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य में डूबकर कवयित्री का मन प्रसन्न हो उठा, वहीं दूसरी ओर कवयित्री हमारी संस्कृति को लेकर भी बहुत गर्व का अनुभव कर रही है। उनके अनुसार हमारी परम्पराएँ हमारी संस्कृति से हमें जोड़े रखती है –
मंत्रोच्चारण / गूँजे नदी किनारे / हैं धरोहर। [210]
हर स्थान पर ‘सु’ का ही अनुभव हो यह संभव नहीं। प्राकृतिक सौन्दर्य के अतिरिक्त इस धरा पर मनुष्य द्वारा बनाए समाज में ‘सु’ की तुलना में ‘कु’ का व्याप ज्यादा दिखाई देता है। कवयित्री ने अपने काव्य के माध्यम से समाज के अच्छे-बुरे दोनों रूपों को चित्रित किया है। कवयित्री कहती है – “जब मनुष्य समाज में रहता है; तो उसे अच्छी-बुरी बातों, विसंगतियों, विद्रूपताओं का भी सामना करता है। इसी को तो जीवन कहते हैं और जीवन है तो प्रकृति का आनंद है।” (पृ. 7) फुटपाथ पर सोने वाले बेघर लोग, बाढ़ से बेहाल लोग, गरीब, मजदूर एवं किसान के संघर्षमय जीवन के प्रति कवयित्री की पूरी सहानुभूति रही है। कवयित्री ने इनकी व्यथा-वेदना को काव्य के माध्यम से पाठक वर्ग के समक्ष रखा है।
सेकता रहा / दिन भर रोटियाँ / फिर भी भूखा ।[703]
सामाजिक रिश्ते-नाते मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। रिश्तों के विविध रूप माँ-पिता-भाई-बहन-बेटी-प्रेमी-प्रेमिका आदि को लेकर मनुष्य के मन में उपजे प्रेम एवं घृणा के भावों की अभिव्यक्ति रत्नाकर जी के हाइकु काव्य में मिलती है।
अजनबी से / रह रहे हैं लोग / ऊँचे मकान। [526]
नारी के विविध रूप एवं उसकी सामाजिक स्थिति, वृद्ध जीवन, अकेलापन, जीवन दर्शन, प्रकृति का भीषण रूप, प्रकृति प्रदूषण, राजनीति, ग्राम्य जीवन का बदलता रूप सभी कुछ तो है इस संग्रह में। विविध संवेदनाओं से संदर्भित कुछ हाइकु इस प्रकार हैं –
दिखाता वह / देख रही दुनिया / खेल मदारी। [694]
धुआँसी आँखें / माँ परोसती रोटी / मिट्टी के चूल्हे। [522]
कीकली खेल / चरखे की घूमर / पीछे हैं छूटे। [517]
संग्रह के भाव पक्ष को आप देख ही चुके हैं, इसके साथ ही संग्रह का सौन्दर्य बढ़ाने में कला पक्ष भी उतना ही मजबूत नज़र आता है। काव्यशास्त्रीय दृष्टि से देखा जाए तो विभिन्न अलंकारों के सहज प्रयोग काव्य के सौन्दर्य में चार चाँद लगाते हैं, यथा –
उत्प्रेक्षा – तारों के गुच्छे / झूमर ज्यों लटके / नील नभ में। [39]
उपमा – बर्फ है जमी / अहल्या-सी हो गई / सर्दी में झील। [277]
रूपक – ओस के मोती / कोहरे की चादर / गढ़े चितेरा। [106]
विरोधाभास – बाँधती रही / जीवनभर घड़ी / बँधा न वक्त। [654]
चूँकि प्रकृति चित्रण इस संग्रह में भरपूर मात्रा में हुआ है तो प्रकृति के अनेक रूपों (आलंबन, उद्दीपन, उपदेशात्मक, रहस्यात्मक एवं नाम परिगणनात्मक आदि) का चित्रण करते अनेक हाइकु संग्रह की शोभा बढ़ा रहे हैं –
मानवीकरण – एकांतवास / है शांत समाधिस्थ / पर्वत पुत्री। [275]
उद्दीपन – वर्षा की बूँदें / बालकनी में बैठ / भीगते मन। [134]
सुंदर बिम्ब एवं प्रतीक के सटीक प्रयोग के अतिरिक्त कुछ अनूठे विशेषणों जैसे – भोर नवेली, नाजुक धूप, धुआँसी आँखें, खोखले नारे, सूनी गलियाँ, भीगते मन, समय चितेरा, निर्मोही बूँदें आदि भी संग्रह के शिल्प पक्ष को निखारने में सक्षम हैं।
विविध संवेदनाओं को आकर्षक शैल्पिक साँचे में प्रस्तुत करने वाली कवयित्री का प्रस्तुत संग्रह कथ्य एवं शिल्प के लिहाज़ से एक सुंदर और स्तरीय कलाकृति है। इस उम्दा सृजन के लिए सुदर्शन जी को अशेष बधाइयाँ एवं साधुवाद।
आ मिल बोएँ / दिल की धरा पर / बीज प्यार के। [662]
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कृति : लहरों के मन में (हाइकु संग्रह), कवयित्री : सुदर्शन रत्नाकर, मूल्य : 360/-, पृष्ठ : 144, संस्करण : 2022, प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
डॉ पूर्वा शर्मा जी मेरे हाइकु संग्रह का इतना सुंदर विश्लेषण करने के लिए हृदय तल से आभार। 🙏🏼🌹
By: sudershanratnakar on अप्रैल 16, 2023
at 3:54 अपराह्न
सडॉ सुदर्शन रत्नाकर एवं डॉ पूर्वा शर्मा आप द्वय को हार्दिक बधाई।
अच्छे संग्रह की अच्छी समीक्षा।
By: ramesh kumar soni on अप्रैल 16, 2023
at 4:15 अपराह्न
हाइकु संग्रह की सशक्त समीक्षा के लिए Dr सुदर्शन जी और Dr पूर्वा जी को हार्दिक बधाई।
By: सविता अग्रवाल”सवि” on अप्रैल 17, 2023
at 7:42 पूर्वाह्न
सुंदर संग्रह के लिए सुदर्शन जी को हार्दिक बधाई । आप यूँ ही सुंदर सृजन करती रहे ऐसी कामना…
समीक्षा को यहाँ स्थान देने के लिए धन्यवाद गुरुवर
By: Dr. Purva Sharma on अप्रैल 17, 2023
at 3:13 अपराह्न
रमेश कुमार सोनी जी, सविता अग्रवाल जी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार।
By: sudershanratnakar on अप्रैल 18, 2023
at 10:30 पूर्वाह्न
सुंदर संग्रह की सुंदर समीक्षा प्रिय पूर्वा जी!
आदरणीया सुदर्शन दीदी जी का हिन्दी साहित्य में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है! उनकी लेखनी सदैव हम सबका मार्गदर्शन करती रही है, एवं भविष्य में भी करती रहेगी, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ!
~सादर
अनिता ललित
By: Anita Lalit on अप्रैल 18, 2023
at 8:54 अपराह्न
सुंदर हाइकु संग्रह की सार्थक समीक्षा के लिए प्रिय पूर्वा एवं आदरणीया सुदर्शन दीदी जी को हार्दिक बधाई।
By: krishnaverma on अप्रैल 19, 2023
at 5:41 पूर्वाह्न
आदरणीया सुदर्शन दीदी को नए संग्रह के प्रकाशन हेतू अनेकाएक बधाइयां।
पूर्वा जी की अति सुंदर समीक्षा ने संग्रह को पढ़ने की इच्छा और प्रबल कर दी!
By: प्रीति अग्रवाल on अप्रैल 20, 2023
at 2:09 पूर्वाह्न
पुस्तक के लिए आदरणीया रत्नाकर जी को हार्दिक बधाई।
पूर्वा जी ने सारगर्भित समीक्षा की है, इसके लिए उन्हें बहुत बधाई।
By: Dr.Jenny shabnam on अप्रैल 22, 2023
at 1:10 पूर्वाह्न
एक उम्दा संग्रह की बहुत सार्थक समीक्षा…आप दोनों को बहुत बधाई
By: प्रियंका+गुप्ता on अप्रैल 28, 2023
at 4:11 अपराह्न