Posted by: हरदीप कौर संधु | अप्रैल 8, 2023

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1-कपिल कुमार

1

आँधी ज्यों आ

गेहूँ की बालियों में

छिड़ी लडाई।

2

खेतों को गयी

हवाएँ कटखनी

दे पटकनी।

3

आँधी ने दिया

देखकरके मौका

खेतों को धोखा।

4

श्रम के बीज

आँधियों ने उखाड़े

हाली अभागे।

5

फुर्र हो गई

पसलियाँ तोड़कर

खेतों की हवा।

6

गला दबाएँ

कटखनी हवाएँ

खेत अचेत।

7

कच्चे छप्पर

आँधी भरे खप्पर

नभ में उड़े।

-0-

2-सविता अग्रवाल ‘सवि’ कैनेडा

1

प्रातः की लाली

आषाढ़ी तपिश में

संध्या निराली।

2

नई नवेली

पहन लाल चुन्नी

पी-संग चली।

3

बिखरे रिश्ते

चुन रही मनके

असफल मैं।

4

याद तुम्हारी

गुनगुनी धूप– सी

लगती प्यारी।

5

शब्द अधूरे

भाव बहे संगीत

बजे ना यंत्र।

6

रंगीला पक्षी

अपनी ही धुन में

गा रहा गीत।

7

रिश्तों की बर्फ़

प्यार भरी गर्मी से

गई पिघल।

8

नादान हूँ मैं

गूढ़ तुम्हारी बातें

समझूँ कैसे?

9

खुशबू फैली

संग सहेलियाँ हैं

दुखों को भूली।

10

आलिंगन में

समुद्र की लहरें

झूलती झूला।

11

दर्द-चादर

थकी पैबंद लगा

बचा ना स्थान।

12

गमों की रातें

लम्बाई में अधिक

सूर्य– प्रतीक्षा।

13

त्योहार आया

बहना बुने राखी

भाई– कलाई।

14

चाँद ने देखा

शीश झील में मुख

चमका जल।

15

सखियों संग

मधुर गीत गाती

भुला ना पाती।

16

रेत की देह

नदी किनारे पर

सदा ही गीली।

-0-

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Responses

  1. बेहतरीन हाइकु, दोनों हाइकुकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

  2. संपादक द्वय का हार्दिक आभार मेरे हाइकु को प्रकाशित करने के लिए। भाई भीकम जी की टिप्पणी के लिए उनका आभार।आपसभी कि प्रतिक्रियाओं से प्रेरणा और बल मिलता है।

  3. अर्थपूर्ण मुग्धता लिए ये सृजन अत्यंत मनोरम हैं 🙏🌹

  4. कपिल जी के हाइकु भी मधुरता पूर्ण हैं विशेषकरi गला दबाएँ / कटखनी हवाएँ… बहुत सुंदर सोच। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

  5. कपिल जी के हाइकु बहुत सुंदर, कटखनी हवाएं का प्रयोग बहुत सुंदर लगा।

    सविता जी के हाइकु भी बेहतरीन, रेत की देह, शीश झील का प्रयोग विशेष सुंदर लगा।

    दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई!

  6. बहुत सुंदर हाइकु…कपिल जी और सविता जी को हार्दिक बधाई!

  7. कपिल कुमार जी के ग्राम्य-जीवन के हाइकु सदा की भाँति अभिनव बिम्बो से युक्त सुंदर और मनहर हैं,वहीं सविता अग्रवाल ‘सवि’ जी के हाइकु प्रकृति के विविध रूपों को सहजता से व्यक्त कर रहे हैं।दोनो हाइकुकारों को बधाई।

  8. आप दोनों हाइकुकार को हार्दिक बधाई-अच्छी रचना के लिए।
    ये दोनों हाइकु अति सुंदर हैं-
    1
    फुर्र हो गई
    पसलियाँ तोड़कर
    खेतों की हवा।

    2
    रेत की देह
    नदी किनारे पर
    सदा ही गीली।

  9. खेतों का बहुत ही सुंदर सजीव चित्रण
    निम्न बिम्ब तो बहुत ही बढ़िया –
    फुर्र हो गई/पसलियाँ तोड़कर /खेतों की हवा।
    गला दबाएँ/कटखनी हवाएँ/खेत अचेत।
    बधाई कपिल जी
    सविता जी भावपूर्ण हाइकु के लिए बधाई
    निम्न हाइकु बेहतरीन –
    दर्द-चादर /थकी पैबंद लगा/बचा ना स्थान।

  10. आप दोनों के हाइकु बहुत पसंद आए, बहुत बधाई


रचनाओं से सम्बन्धित आपकी सार्थक टिप्पणियों का स्वागत है । ब्लॉग के विषय में कोई जानकारी या सूचना देने या प्राप्त करने के लिए टिप्पणी के स्थान पर पोस्ट न करके इनमें से किसी भी पते पर मेल कर सकते हैं- hindihaiku@ gmail.com अथवा rdkamboj49@gmail.com.

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