रश्मि विभा त्रिपाठी
1
विलुप्तप्राय!
लोग मन के सच्चे
घरौंदे कच्चे।
2
सगे का स्वार्थ!
सर्वत्र कुरुक्षेत्र
देख लो पार्थ!!
3
प्रेम का क्षय!
रिश्तों का परिचय
अब यही है।
4
करें दमन
कुटुम्बी दुर्योधन
कहाँ मोहन?
5
प्रेम रिश्तों से
हो तितर- बितर
गया किधर?
6
हवेली धाँसू
बँटवारे के कौन
बाँचता आँसू!
7
बिछी बिसात!
रिश्तों की करामात
बड़ी निराली।
8
आँसू से गीला
रिश्ता- मिट्टी का टीला
भरभराया!
9
मन में खोट
मौका पाते ही चोट
दे गए रिश्ते!
10
लोग लगाते
धर कपटी भेष
रिश्तों की रेस!
11
समर्पित थे
जिन्हें प्राण औ मन
वे ही दुश्मन!
12
बुरे सपने-
आएँ, डराएँ जैसे
मेरे अपने!
13
स्वजन छली!
देखा अब न जाता
दया विधाता!!
14
मेरा ही सगा
मुझे मोह से छले
दुश्मन भले!!
15
देव न दूजा!
कलियुग का धर्म
वित्त की पूजा।
16
घर हो गया
अब तो कुरुक्षेत्र
केशव दया!
17
देख लो पिता!
तुम्हारे जाते जली
रिश्तों की चिता।
18
घर छानती!
बेटी, पिता की पीर
अर्थी जानती।
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सराहनीय सृजन… रश्मि जी 🌹🌹🌹मैं सदैव आपकी लेखनी की प्रशंसा करती हूँ 🌹🙏🙏🙏
By: Anima Das on जुलाई 1, 2022
at 6:12 अपराह्न
मेरा ही सगा / मुझे मोह से छले/ दुश्मन भले •••वाह ,सभी हाइकु बेहतरीन, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
By: भीकम सिंह on जुलाई 1, 2022
at 6:29 अपराह्न
स्टीक और समसामयिक
बहुत अच्छा लगा
मेरा ही सगा
मुझे मोह से छले
दुश्मन भले!!
बधाई
By: Kamla Nikhurpa on जुलाई 1, 2022
at 8:33 अपराह्न
हाइकु प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आप आत्मीय जन की टिप्पणी का हार्दिक आभार।
सादर
By: rashmivibhatripathi on जुलाई 2, 2022
at 7:47 अपराह्न
सुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी, जीवन का कटु सच!
By: प्रीति अग्रवाल on जुलाई 3, 2022
at 9:59 पूर्वाह्न
बहुत प्यारे हाइकु हैं, मेरी बधाई
By: प्रियंका+गुप्ता on जुलाई 5, 2022
at 3:09 अपराह्न
उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई रश्मि जी। ट
By: sudershanratnakar on जुलाई 5, 2022
at 3:40 अपराह्न
बेहतरीन सृजन…हार्दिक बधाई रश्मि जी।
By: krishnaverma on जुलाई 8, 2022
at 3:40 पूर्वाह्न