डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
वर्ण सितारे( हाइकु-संग्रह):कवयित्री-ऋताशेखर मधु , प्रकाशक-श्वेतांशु प्रकाशन,एल-23, शॉप न-6, गली नं-14/15, न्यू महावीर नगर, नई दिल्ली-110018,पृष्ठ संख्या-132,मूल्य-250/-,संस्करण-प्रथम-2021
वर्ण सितारे ऋता शेखर मधु का प्रथम हाइकु-संग्रह है जिसमे बत्तीस शीर्षकों के अंतर्गत एक हाइकु-गीत एवं छह सौ हाइकु संकलित है। ऋता शेखर मधु लंबे समय से हाइकु लेखन में सक्रिय हैं, अंतर्जाल की दुनिया मे एक सशक्त रचनाकार के रूप उनकी पहचान है। हाइकु के अतिरिक्त लघुकथा,कविता एवं कहानी इत्यादि अनेक विधाओं में वे सृजनरत हैं। प्रकाशित कृति के रूप में वर्ण सितारे उनकी प्रथम कृति है।
हाइकु की इस कृति में ऋता जी ने अपने परिवेश में आए लगभग हर विषय को स्पर्श करने का प्रयास करते हुए उन पर हाइकु रचे हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी ने संग्रह में अनुभूतियाँ शीर्षक से शुभकामना संदेश में लिखा है-‘वर्ण सितारे की भावभूमि वैविध्यपूर्ण है। इसमे प्रकृति का अभिभूत करने वाला वैविध्यपूर्ण सौंदर्य है।’।.निःसन्देह विषय के स्तर पर ऋता जी के इस संकलन में पर्याप्त विविधता है। प्रकृति के विविध रूपों के चित्रों तथा लोक-संस्कृति और लोक-जीवन के बहुरंगी वर्णन के साथ ही राष्ट्रीयता है,चरखा है,तिरंगा और सरहद के चित्र हैं,पर्यावरण के प्रति चिंता है, दर्शन-अध्यात्म है, भक्ति है,रिश्ते-नातों की महत्ता है…और भी ऐसे अनेक विषय जो उनके दृष्टि-पथ में आए उन्होंने सभी को हाइकु में ढालने का प्रयास किया है।
यद्यपि हाइकु जापानी विधा है और इसमें भारतीय काव्यशास्त्र के मानकों या नियमों को मानने का कोई बंधन नहीं है, अनेक विद्वान तो हाइकु में अलंकार इत्यादि का निषेध करते हैं ,तथापि परम्परा के पोषक अनेक कवि हाइकु को भी भारतीय परम्परा के अनुरूप ही रच रहे हैं। ऋता शेखर मधु के वर्ण सितारे में भी अनेक स्थलों पर भारतीय काव्यशास्त्र की परपम्परा का निर्वाह दृष्टिगोचर होता है। भारतीय-काव्य- परम्परानुसार किसी भी काव्य-ग्रंथ का आरंभ गणपति वंदना से होता है। ऋता जी ने भी इस परम्परा का पालन करते हुए कृति के प्रथम पृष्ठ पर गणपति वंदना का हाइकु दिया है- दूर्वा सुमन/गणपति वंदन/हाइकु मन।
गणपति वंदना के पश्चात ज्ञान की देवी माँ शारदा की वंदना के साथ ही उन्होंने कृति का शुभारम्भ किया है,यह भी भारतीय काव्य-शास्त्र की परंपरा के अनुरूप है
–शुभ आरम्भ/ज्ञान की देवी के नाम/पृष्ठ प्रथम।
हाइकु मूलतः प्रकृति की कविता है अतः प्रकृति चित्रण समस्त हाइकुकारों का प्रिय विषय है, ऋताशेखर मधु भी इसका अपवाद नहीं हैं,शायद ही प्रकृति का कोई रूप उनकी लेखनी से अछूता रहा हो। उन्होंने प्रकृति के आलम्बन रूप को तो लिया ही है, साथ ही उसके सुंदर आलंकारिक चित्रों को भी चित्रित किया है। विविध ऋतुओं के चित्रण में भी ये विशेषता दृष्टिगोचर होती है। कहीं-कहीं प्रकृति का मानवीकरण है तो कहीं वह महत्त्वपूर्ण सन्देश भी देती है। प्रकृति के ये विविध रूप भी भारतीय काव्य-परम्परा के अनुरूप ही हैं।ऋता जी की कल्पनाएँ मौलिक हैं और बिम्ब अनूठे हैं,यथा उषा काल और चंद्रोदय के ये हाइकु उल्लेखनीय हैं जहाँ प्रकृति का मानवीकरण करते हुए अनूठे बिम्बों के साथ प्रस्तुत किया गया है-
बंदिनी उषा/तम पिंजरे तोड़ें/सूर्य रश्मियाँ।
शर्मीली कन्या/पत्तों के पीछे से/झाँकता चाँद।
ये बिम्ब सर्वथा नवीन एवं अनूठे हैं। इसी प्रकार प्रकृति के मानवीकरण एवं अभिनव बिम्बों के कुछ और भी हाइकु मन को मुग्ध करते हैं यथा-
हवा धुनिया/रेशे -रेशे में उड़ीं/मेघों की रुई।
बाग मोगरा/सुगंधों की पोटली/हवा के काँधे।
इंद्रधनुष/बुन रही है धूप/वर्षा की चुन्नी।
कहीं कहीं सर्वथा नवीन उपमान देखने को मिल जाते हैं, जैसे कि धुंध में वाहनों की हेड लाइट को बिल्ली की आँखों से तुलना करना-
हेड लाइट/काली बिल्ली की आँखें/धुंध के बीच।
इसी प्रकार यादों की लिट्टी के सिंकने का उदाहरण भी सर्वथा नवीन है।
जले अलाव/गप–शप में सिंकी/यादों की लिट्टी।
प्रकृति के आलंकारिक रूप के भी अनेक सुंदर हाइकु वर्ण सितारे मे देखने को मिल जाते हैं,प्रायः अनुप्रास,उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा अलंकारों के प्रयोग हुए हैं कहीं कहीं व्यतिरेक अलंकार भी उपस्थित है। उदाहरण हेतु उपमा,उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, व्यतिरेक के ये हाइकु देखे जा सकते हैं-
शिशिर भोर/मृग छौना सी धूप/भागती फिरे।
पलाश फूल/प्रहरी के हाथ मे/अग्नि का वाण।
चिट्ठी में फूल/मीठे दर्द का शूल/कहीं चुभा है।
भीनी महक/आम्र कुंज बौराया/इत्र शर्माया।
प्रकृति के बहुविधि चित्रों के साथ ही इस संकलन में लोक-जीवन,लोक-संस्कृति और लोक-परम्पराओं के सुंदर चित्र भी विद्यमान हैं।यथा ,लोक जीवन मे कौओं के विषय मे अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं,माना जाता है कि छत पर काग का बोलना प्रिय आगमन का संदेश होता है,इसके साथ ही किसी के सिर पर काग का बैठना अशुभ का सूचक भी है। पितृ पक्ष में कौओं के भोजन से पितरों के तृप्त होने की मान्यता भी है, इन लोक-मान्यताओं की अभिव्यक्ति हाइकु मे बड़े ही सहज रूप में देखी जा सकती है-
काक-सन्देश/प्रीतम आगमन/द्वार रंगोली।
शुभ-अशुभ/देता रहा सन्देश/काग सयाना।
वाहक काक/भावों का लेन-देन/पितर-पक्ष।
कृषक जीवन लोक-मान्यताओं,परम्पराओं एवं कहावतों पर बहुत कुछ निर्भर रहता है।कृषक जीवन के खेती के संदर्भ में प्रचलित मान्यताओं/ लोकोक्तियों को भी संग्रह के कुछ हाइकु में देखा जा सकता है –
रबी खरीफ/नक्षत्रों का हो ज्ञान/तूर की खान।
कृष्ण दशमी/आषाढ़ की रोपनी/धान-बाहुल्य।
चना की खोंट/मकई की निराई/रंग ले आई।
जहाँ तक लोक-उत्सवों की बात है तो होली,दीपावली,करवा-चौथ,रक्षा-बंधन इत्यादि प्रसिद्ध लोक उत्सव हैं जिनका वर्णन प्रायः हर कवि ने किया है।ऋता जी ने भी इन लोक-उत्सवों पर सुंदर हाइकु रचे हैं। इन हाइकु में परम्परा एवं लोक- उल्लास के समन्वित रूप को देखा जा सकता है-
कान्हा के हाथ/रंगीन पिचकारी/राधा रंगीन।
आधा चंद्रमा/कड़ाही में गुझिया/होली मिठास।
फलक हँसा/कंदील को उसने/चाँद समझा।
श्रावणी झड़ी/बहना ले के खड़ी/राखी की लड़ी।
कतकी चौथ/छलनी में चंद्रमा/प्रिय दर्शन।
वर्ण सितारे में ऋता जी ने एक ऐसे विषय को भी चुना है जिस पर शायद ही किसी हाइकुकार ने लेखनी चलाई हो वह विषय है-चरखा।चरखा लकड़ी का यंत्र मात्र न होकर आजादी के आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक भी है। इस बात को ऋता जी ने पहचाना और उस पर हाइकु भी रचे-
मन मे गाँधी/तन पर थी खादी/मिली आजादी।
देश मे चर्चा/स्वाभिमानी चरखा/बापू का सखा।
राष्ट्रीय भाव से ओतप्रोत हाइकु में तिरंगा-सरहद के हाइकु भी महत्त्वपूर्ण हैं-
नील गगन/भारत का तिरंगा/आँखों का नूर।
सरहद से/आया पी का संदेश/बावरी पिया।
चली बंदूक/सरहद थर्राया/भरे ताबूत।
वर्ण सितारे की भाषा में भी वैविध्य है, विषय के अनुरूप शब्द-चयन और तदनुकूल भाषा इन हाइकु में देखी जा सकती है,कहीं भाषा का प्रांजल रूप है, कहीं शुद्ध परिष्कृत खड़ी बोली के शब्द अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों के साथ घुले-मिले हैं। कहीं-कहीं लोकोक्ति और मुहावरों का भी प्रयोग है। परिष्कृत और प्रांजल भाषा का एक उदाहरण देखिए-
वर्ण मंजरी/मानसरोवर में/हाइकु हंस।
कृष्ण या पार्थ/जग कुरुक्षेत्र मे/दोनो पात्र मैं।
इसी के साथ मुहावरेदार भाषा देखिए-
दिखी दरार/खोते हैं रिश्ते सच्चे/कान के कच्चे।
विदा करे माँ/आँचल में बाँध दी/सीख पोटली।
प्रचलित अरबी-उर्दू के शब्दों का प्रयोग तो है ही साथ ही जहाँ आधुनिक-सन्दर्भों के हाइकुओं का सृजन हुआ है,इनमें भाषा के उन्हीं तकनीकी शब्दों को ग्रहण किया गया है जो प्रचलित हैं,यथा
–नभ – नक्षत्र/सप्तऋषि मंडल/सोशल एप।
गुम थे मित्र/व्हाट्सएप समूह/पुनर्मिलन।
विषैली हवा/पॉलिथिन का धुआँ/राह किनारे।
हवा में धुआँ/घबराए फेफड़े/आया एक्स-रे।
ऋता जी की दृष्टि मे उनके ये हाइकु साहित्य-गगन में चमकने वाले वर्ण सितारे हैं,ये बात उन्होंने संग्रह के प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर दी है-
छह सौ हाइकु/साहित्य गगन में/वर्ण सितारे।
निःसन्देह अलग-अलग आभा वाले ये वर्ण सितारे हिंदी हाइकु के साहित्याकाश को अपनी दीप्ति से सदैव आलोकित करते रहेंगे।
-0- Email-shivji.sri@gmail.com
ॠताशेखर ‘मधु ‘ जी को उनके प्रथम हाइकु संग्रह के लिए और डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी को बेहतरीन समीक्षा के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
By: भीकम सिंह on अप्रैल 25, 2022
at 1:17 अपराह्न
प्रथम हाइकु संग्रह के प्रकाशन हेतु ॠताशेखर ‘मधु ‘ जी को और सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।
By: krishnaverma on अप्रैल 25, 2022
at 2:03 अपराह्न
ऋताशेखर मधु जी को उनके प्रथम हाइकु संग्रह के लिए बहुत-बहुत बधाई। बानगी रूप में प्रस्तुत हाइकु प्रमाणित कर रहे कि संग्रह उत्कृष्ट कोटि का है।शिवजी श्रीवास्तव जी को तटस्थ समीक्षा हेतु पुनः-पुनः बधाई।
By: सुरंगमा यादव on अप्रैल 25, 2022
at 2:51 अपराह्न
सुंदर समीक्षा सदैव की तरह डॉ शिवजी श्रीवास्तव की-बधाई।
ऋता जी को पुनः बधाई एवं शुभकामनाएँ, इसकी ई बुक की समीक्षा मैंने लिखी थी जो अब इस संग्रह में शुभकामना के तहत पृष्ठ 10 से 12 में प्रकाशित है।
हिंदी हाइकु की श्री वृद्धि की ओर एक और सुनहरा कदम।
शुभकामनाएँ।
By: ramesh kumar soni on अप्रैल 25, 2022
at 4:18 अपराह्न
प्रथम हाइकु संग्रह के प्रकाशन हेतु ॠताशेखर ‘मधु ‘ जी को और सुंदर समीक्षा के लिए डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।
By: gurjarmathskapil on अप्रैल 25, 2022
at 6:47 अपराह्न
बहुत सुंदर समीक्षा के लिए शिवजी श्रीवास्तव जी एवं ऋता शेखर ‘मधु ‘जी को उनके प्रथम हाइकु संग्रह ‘वर्ण सितारे’के प्रकाशन हेतु हार्दिक बधाई।
By: sudershanratnakar on अप्रैल 25, 2022
at 9:53 अपराह्न
ऋता शेखर जी ने जिस प्रकार लोकोल्लास और लोक मान्यताओं के समन्वित स्वरूप को विविध अलंकारों का उपयोग करते हुए हाइकु के माध्यम से प्रदर्शित किया है वास्तव में अद्भुत है👌👌👌👍👍👍
By: Katyayani DR. Purnima Sharma on अप्रैल 26, 2022
at 1:03 पूर्वाह्न
सुन्दर संग्रह की सटीक समीक्षा
ऋता जी को सुन्दर संग्रह के लिए शुभकामनाएँ
शिवजी जी को बढ़िया समीक्षा के लिए बधाई
By: Dr. Purva Sharma on अप्रैल 26, 2022
at 2:24 पूर्वाह्न
वाह! बहुत बहुत बधाई आदरणीय ऋता दी को…और आदरणीय शिवजी को भी इस सारगर्भित समीक्षा के लिए बहुत बधाई
By: प्रियंका+गुप्ता on अप्रैल 26, 2022
at 3:49 अपराह्न
ऋता जी को उनके हाइकु संग्रह के लिए अनेक बधाई और शुभकामनाएँ। श्री शिवजी श्रीवास्तव जी को भी इतनी सुंदर सारगर्भित समीक्षा के लिए हार्दिक बधाई।
By: सविता अग्रवाल “सवि” on अप्रैल 26, 2022
at 8:20 अपराह्न
प्रथम हाइकु संग्रह के प्रकाशन हेतु, ऋता जी को बहुत बहुत बधाई।
हमेशा की तरह शिवजी भैया की बेजोड़ समीक्षा ने संग्रह पढ़ने की उत्सुकता और अधिक बढ़ा दी । बधाई भैया।
By: प्रीति अग्रवाल on अप्रैल 27, 2022
at 4:54 पूर्वाह्न
ऋता जी को उनके प्रथम हाइकु-संग्रह के लिए दिल से बधाई। आदरणीय शिवजी श्रीवास्तव जी ने पुस्तक की बहुत सुन्दर समीक्षा की है, आपको हार्दिक बधाई।
By: Dr.Jenny shabnam on अप्रैल 30, 2022
at 1:19 पूर्वाह्न