1- सुभाष नीरव, नई दिल्ली
रचना जी,पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई – ‘मन के द्वार हज़ार’ पुस्तक के प्रकाशन की। आपने हिन्दी हाइकुओं का अवधी भाषा में जीवन्त अनुवाद करके एक बेहद कठिन और असम्भव-से कार्य को इतना खूबसूरत अंजाम दिया है। आपका श्रम और आपकी लगन को सलाम ! आपका बहुत- बहुत शुक्रिया कि आपने मेरे कुछ हाइकु को भी इस योग्य समझा। मुझे बहुत भीतर तक खुशी हुई अपने हाइकु का अवधी में इतना प्रामाणिक और सुन्दर अनुवाद पढ़कर। आपने तो इन्हें मौलिक सृजन का-सा रंग दे डाला। अनुवाद से मैं भी जुड़ा हूँ, पर कविता के अनुवाद से बहुत बचता हूँ। कारण -कविता की आत्मा को अगर आप नहीं पकड़ पाए तो वह मूल रचना (कविता) के साथ अन्याय होता है। लेकिन आपने कविता की आत्मा को पकड़ा, शाब्दिक अनुवाद करना आपका ध्येय नहीं रहा, जो कि एक अनुवादक के सफल होने की पहचान है। मुझे तो लगता है कि अवधी में अनूदित मेरे हाइकु अब मेरे नहीं, आपके हो गए क्योंकि आपने इन्हें अपनी भाषा में जिया और जीवन्त किया।
एक बार पुन: आभार आपका ! शुभकामनाओं सहित-सुभाष नीरव
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2-डॉ सतीशराज पुष्करणा, पटना
चर्चित हाइकु –कवयित्री रचना श्रीवास्तव द्वारा अनूदित एवं सम्पादित हाइकु-संकल ‘मन के द्वार हज़ार’ का अध्ययन कर अभिभूत हूँ कि किस कुशलता से रचना श्रीवास्तव ने हिन्दी के श्रेष्ठ हाइकु का चुनाव करके उनका अवधी में अनुवाद करके , इस प्रकार का प्रथम बृहद कार्य करने का श्रेय प्राप्त किया है ।
प्रत्येक हाइकु अपनी मूल आत्मा के साथ अवधी का बन गया है ॥ वस्तुत: यही इसी उत्कृष्ट अनुवाद कार्य की विशेषता मानी जाती है। इस सुकार्य के लिए मैं रचना को हार्दिक बधाइ देता हूँ तथा उनसे यह अपेक्षा करता हूँ कि वह ऐसे अन्य कार्यों को भविष्य में भी अंजाम देती रहेंगी। ताँका , सेदोका और चोका भी उनकी लेखनी का स्पर्श पाने को आतुर हैं , ऐसा मुझे लगता है।
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3-डॉ हरदीप सन्धु , सिडनी आस्ट्रेलिया
प्रिय रचना जी,’मन के द्वार हज़ार’ पुस्तक के प्रकाशन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।हिंदी हाइकु का अवधी भाषा में अनुवाद पढ़कर मन के हजारों द्वार खुल गए।जिसके शब्दकोश में असम्भव जैसा कोई शब्द ही नहीं होता वही ऐसे कठिन कार्य को खूबसूरती से अंजाम दे सकता है और ऐसा आपने कर दिखाया है।आपकी कलमी सोच को सलाम ! अनुवाद अपने आप में एक कठिन क्षेत्र है और एक अच्छा अनुवादक मौलिक लेखन की सर्जनात्मकता से संपन्न होता है। सबसे अच्छा अनुवाद वही है ;जिसमें अनुवाद की गंध तक न हो ताकि पाठक को ऐसा लगे कि वह मूल कृति ही पढ़ रहा है । ये सभी बातें आपके अनुवाद में साफ़ झलकती हैं।मैं भी अनुवाद से जुडी हुई हूँ।कवितायों का अनुवाद सबसे कठिन काम है । एक पौधे को उसकी माटी से उखाड़कर दूसरी माटी में लगाना और उसे हरा-भरा रखना ही अनुवाद है । इसमें सबसे बड़ी चुनौती है – शब्द चयन ।मगर आपने हाइकु के भाव तथा कला दोनों का निर्वाह सहजता तथा सम्पूर्णता से किया है । अवधी में अनूदित होने पर भी ये हाइकू शिल्प को सँजोकर रखे हुए हैं ।आपने अनुवाद करके दो भिन्न संस्कृतियों को जोड़ा है।इस अनुवाद यात्रा में मेरे तथा सुप्रीत बिटिया के हाइकु शामिल करके आपने हमें उत्तर प्रदेश के अवध -क्षेत्र से जोड़ दिया है। अनुवाद के जीवन्त हाइकु चित्रण का रंग मन के हर द्वार पर बहुरंगी छटा बिखेर रहा है।
अदब एवं शुभकामनाओं सहित
डॉ हरदीप कौर सन्धु
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4-सीमा स्मृति, नई दिल्ली
हाइकु- संग्रह ‘मन के द्वार हजार’ मिला । मैं रचना श्रीवास्तव जी से कहना चाहती हूँ कि मुझे हाइकु के समुद्र में गोते लगाना हिन्दी हाइकु ने सिखाया। रचना जी के लिए अनुवाद की यह यात्रा वास्तव में कठिन रही होगी। हाइकु का अनुवाद करना वास्तव में अत्यन्त दुरूह कार्य है। रचना जी आप ने मेरे लिखे हाइकु को भी अनुवाद हेतु चुना; इसके लिए मैं हार्दिक धन्यवाद देती हूँ साथ ही आप के इस कार्य के लिए जो कि अवधी साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात करेगा ,उसके लिए भी बधाई देती हूँ। अवधी साहित्य व हाइकु जगत् के लिए भी आप ने हज़ार द्वार खोल दिए। आप ने अपने गहन अनुभव व अथक प्रयास से इस कार्य को पूर्ण किया। यह बहुत ही कठिन कार्य है कि हाइकु के अनुवाद के साथ उसके भाव व छन्द की रक्षा करना ।
मेरे एक हाइकु का आप ने अनुवाद किया –
आसा किरन /झॉंकति झरोखा से /नवा मिलन।
वास्तव में आप के इस प्रयास से एक नई आशा की किरण दिखाई दी है।आप ने लिखा -आपै कहीं कैयीसन लागे ई कितबिया ———– हम सब का आशीर्वाद आप के साथ हमेशा रहेगा। साथ ही साथ यह शुभकामना भी कि आप साहित्य की हर यात्रा में लगातार कामयाब हों और साहित्य जगत् को अपने कार्यो से समृद्ध करें।
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5-अनिता ललित, लखनऊ
‘ई कितबिया
मनवा मा उतरी
बहुतै भायी !‘
आदरणीया रचना श्रीवास्तव जी द्वारा अनूदित ‘मन के द्वार हज़ार’ संकलन मेरे हाथों में है! इस बहुमूल्य रचना को मुझ तक पहुँचाने के लिए हिमांशु भैया जी का बहुत-बहुत धन्यवाद व आभार! हिन्दी हाइकु का अवधी अनुवाद पढ़कर बहुत अच्छा लगा! सबसे बड़ी बात यह लगी कि अवधी भाषा में भी हाइकु की संरचना तथा उसके भाव वैसे ही छलक रहे हैं ,जैसे कि हिन्दी की खड़ी बोली में! रचना जी का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है! उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई! अपने लिखे हाइकु इस संकलन में देखकर अभिभूत हूँ! रचना जी को इस अनमोल उपलब्धि पर ढेरों बधाई तथा भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ!
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5- कमला निखुर्पा , प्राचार्या,सूरत , गुजरात ।
अवधी में हाइकु की मधुरता में चार चाँद लगाने के लिए प्रतिष्ठित कवयित्री श्रीमती रचना श्रीवास्तव को समर्पित चंद पंक्तियाँ –
कूकी है मधुर अवध की कोयलिया
गूँज उठी रे देखो हिन्दी की बगिया ।
कितना अनूठा ये भावों का मेल
बढ़ चली देखो नन्हीं हाइकु की बेल ।
दूर बैठे कवि सब मिलके राह दिखाए
कलम से कलम का अजब मेल कराए ।
देश से परदेश से, अलग अलग भेष में
पाहुन बन आये हाइकु, रचना के द्वार ।
अपनी बोली में रस की गंगा जो घोली ,
खुल गए देखो ‘मन के द्वार हजार’ ।
प्रसिद्ध हाइकुकारों के बीच मुझे स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
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6-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा , वापी गुजरात
मनोभावों की रसमय अभिव्यक्ति विशिष्ट है और उससे भी विशिष्ट है दूसरे के भावों को आत्मसात् करते हुए उनकी अभिव्यक्ति को ,उस ही विशिष्ट विधा में ,उतनी ही निपुणता से अन्य भाषा में प्रस्तुत करना ।ऐसा ही अतिविशिष्ट कार्य है रचना श्रीवास्तव जी का रस-भाव-शिल्प को यथावत् रखते हुए हाइक का अवधी अनुवाद ।’मन के द्वार हज़ार ‘में रचना जी ने एक-दो नहीं पूरे ३४ रचनाकारों के ५४२ हिंदी हाइकु अवधी में अपने पूर्ण सरस ,सुन्दर , मोहक रूप में प्रस्तुत किए हैं ।यदि कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगी कि अवधी के रस-माधुर्य और उनके भीतर की कवयित्री की भाव प्रवणता ने आनंद को और बढ़ा दिया है ।ऐसी परिश्रम साध्य, उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए रचना जी को बहुत -बहुत बधाई एवं शुभ कामनाएँ !”
7-सुशीला शिवराण
’मन के द्वार हज़ार’ का मोहक आवरण देखकर प्रतीक्षा और तीव्र हो गई । मेरे लिए तो ये अत्यधिक रोमांच के क्षण थे ;क्योंकि मेरी रचनाओं का पहली बार उस भाषा में अनुवाद किया गया ;जो साहित्य की अत्यंत समृद्ध एवं प्राचीन भाषा है. अवध क्षेत्र की भाषा है जिसे समृद्ध कर रही थीं सुदूर अमेरिका में बैठी कवयित्री – रचना जी ! कितनी विलक्षण बातें जुड़ी हैं इस संग्रह के साथ !
बहरहाल पुस्तक पाते ही सबसे पहले डॉ सुधा गुप्ता जी, भैया रामेश्वर काम्बोज जी और संपादकाचार्य डॉ रमाकांत श्रीवास्तव जी के पुस्तक के विषय में विचार पढ़े और यह अनुभूति हुई कि इस श्रेष्ठ संकलन में स्थान पाना मेरे और मेरी हाइकु रचनाओं के लिए सौभाग्य की बात है ! दिग्गज और प्रतिष्ठित रचनाकारों के साथ प्रकाशित होना आत्म-तुष्टि से भरने के साथ-साथ बेहतर सृजन के लिए प्रेरित करता है ।
जिन हाइकु रचनाओं ने मन मोहा –
1-किसोरी डार/किसलय लपेट/सरम लाग ।
2-चनार पात/कहाँ पाईस आग/बतावा जरा ।
3-कुतरत बा/देस कै संबिधान/संसदी मूस ।
4-गय सिकारी/खोजत हिरनिया/आपन छौना ।
5-दैईके नेह/दिन रात पीर कै/फ़सल काटे ।
6-मईया याद/मंदिर के दियवा/जरे हमेसा ।
7-खुदहीं तपे/सुरजवा जे डरे/ढूँढे बदरा ।
8-तलैया सूखी/कटोरिया मा पानी/पाखी नहात ।
9-लौउटे कहाँ/परदेसी मनवा/घरवा नाही।
10-तोहरे आये/फिर जियेन हम/अब न जायो ।
11-आपन पंख/तितली फ़ैहरावै/आकास रंगे ।
वरिष्ठ रचनाकारों के साथ बाल रचनाकारों को पढ़कर बहुत अच्छा लगा । उनके लिए दिल से सुनहरे भविष्य की प्रार्थना ।
रचना जी को साधुवाद निस्वार्थ साहित्य सेवा एवं नए रचनाकारों को पहचान दिलाने के लिए नमन ।इस संकलन के प्रत्येक हाइकुकार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
सदा आपके स्नेह और मार्गदर्शन की आकांक्षी
सुशीला शिवराण
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8-डॉ आरती स्मित , नई दिल्ली
सबसे पहले रचना जी को ‘मन के द्वार हज़ार’ पुस्तक के सुंदर सम्पादन के लिए बधाई । । पिछले नौ वर्षो से विदेश- प्रवास के बावजूद अवध की माटी की खुशबू संजोकर आपने चौंतीस हाइकुकारों के हाइकु को अवधी में अनुवाद करने का सराहनीय कार्य किया है, इसके लिए पुनः बधाई । आपने मेरे हाइकु का भी अनुवाद कर उसके सौन्दर्य को बढ़ा दिया है। हार्दिक धन्यवाद और ढेर सारी शुभकामनाएँ !
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सुशीला शिवराण,अनिता ललित,कमला निखुर्पा,डॉ.आरती स्मित,डॉ.सतीशराज पुष्करणा,सीमा स्मृति,सुभाष नीरव,सुशीला शिवराण आप सभी ने मेरी पुस्तक को स्नेह गंगा से भिगो दिया है .इतना अपनापन दिया की मन भर आया .जब मै अनुवाद कर रही थी तो नहीं सोचा था की सभी का इतना प्यार मिलेगा .आपसभी के लिखे एक एक शब्द मेरे लिए अनमोल हैं .
भाई हिमांशु जी ने मुझसे कहा था ये अच्छा कार्य है और उन्ही से प्रोत्साहन मिलने पर मै ये कार्य कर सकी उनका बहुत बहुत आभार .
जन मन भरा हो तो शायद ज्यादा लिखा नहीं जाता कहना बहुत कुछ चाहती हूँ पर ……………….
आप सभी को हृदय से धन्यवाद अपना स्नेह इसी तरह बनाये रखियेगा यही प्रार्थना है
रचना
By: rachana on अक्टूबर 17, 2013
at 8:02 पूर्वाह्न
बहुत अच्छा लगा सभी वरिष्ठ रचनाकारों को एक साथ पढने का मौका मिला , संकलन
हेतु रचना जी को हार्दिक बधाई , सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई। अभी हमें सफ़र
में बहुत कुछ सीखना है। आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन की आकांशा सदैव रहती
है।
2013/10/17 “हिन्दी हाइकु(HINDI HAIKU)-‘हाइकु कविताओं की वेब पत्रिका’-2010
By: Shashi Purwar on अक्टूबर 17, 2013
at 5:23 अपराह्न
‘ मन के द्वार हजार ‘ के लिए रचना जी – रचनाकारों हार्दिक बधाई .
साहित्य जगत के शिखर को छुए .
By: manju gupta on अक्टूबर 17, 2013
at 7:08 अपराह्न
रचना जी ! साहित्यकारों की टीप आपके इस श्रम, इस प्रयास का स्नेह भरा सम्मान है ! आपके साथ-साथ कांबोज भैया एवं डॉ हरदीप सन्धु की साहित्यिक अराधना को भी साधुवाद !
आप सभी का दिल से आभार एवं आप सभी के लिए अशेष शुभकामनाएँ !
By: सुशीला श्योराण ’शील’ on अक्टूबर 18, 2013
at 2:16 पूर्वाह्न
हार्दिक बधाई रचना जी को ! एक दुष्कर काम को अंजाम दिया ……गौरव का विषय है !
By: Deepti Gupta on अक्टूबर 25, 2013
at 7:45 अपराह्न