रामस्वरूप मूँदड़ा
1
सब खो गए
शेष रह गया मैं
एकाभिनय ।
2
छल–कपट
ज़िन्दगी भर किया
रोकर जिया ।
3
माटी का घर
माटी में मिलना है
आत्मा अमर ।
4
खुली जटाएँ
छाई काली घटाएँ
आएगा पानी ।
5
रूप निखरा
अश्रु–जल में भीग
हँसा चेहरा ।
6
तुम्हारी याद
चित्रशाला हो गई
आँखों के आगे ।
7
टूटी चौपाल
गए बैकुण्ठधाम
वे संगी -साथी
8
जितना दिया
उससे कम लिया
यही बचत ।
9
एक हिचकी
यादों का समन्दर
लहरा गई ।
10
कौन चुराता ?
छिपे रहे मन में
तुम्हारे अक्स ।
11
रखना याद–
दर्द भरे दिन में
रहना मौन ।
-0-
सभी सुन्दर भावात्मक हाइकु….हार्दिक बधाई!
By: कृष्णा वर्मा on जून 15, 2013
at 1:54 पूर्वाह्न
कौन चुराता ?
छिपे रहे मन में
तुम्हारे अक्स ।
विरह अपने चरम पर। बहुत सुन्दर हाइकु। अन्य भी सुंदर।
By: सुशीला श्योराण ’शील’ on जून 15, 2013
at 1:56 अपराह्न
बहुत भावपूर्ण हाइकु …
रखना याद-
दर्द भरे दिन में
रहना मौन ।….सत्य !
-0-
By: jyotsna sharma on जून 15, 2013
at 11:23 अपराह्न
I Read first Time ………Thanks to Mr. Ramswaroop Mundra.
सभी सुन्दर भावात्मक हाइकु….हार्दिक बधाई!………….Nanji
By: Nanji Sharma on जून 16, 2013
at 2:25 पूर्वाह्न
teesra,chautha,athwan haiku manko bhaya badhai.
Pushpa Mehra
By: pushpamehra on जून 18, 2013
at 11:52 अपराह्न
कौन चुराता ?
छिपे रहे मन में
तुम्हारे अक्स ।
भावपूर्ण हाइकु के लिए बधाई…|
By: प्रियंका गुप्ता on जून 19, 2013
at 3:22 अपराह्न
कौन चुराता ?
छिपे रहे मन में
तुम्हारे अक्स ।
वाह ! सच्चा खजाना पास तो कैसा डर.. !
सभी रचना बहुत सुन्दर हैं.. !!
By: Arun Singh Ruhela on जून 27, 2013
at 1:25 पूर्वाह्न