1-वंशस्थ गौतम
1
दु:ख की नदी
दर्द की धारा लिये
बहती रही ।
2
रहूँ तटस्थ
दु:ख मिले या सुख
न डिग जाऊँ ।
3
दु:ख भी तेरे
सुख तो हैं ही तेरे,
क्यों घबराऊँ ?
4
दु:ख व सुख
नदिया के दो तट
बहता जाऊँ ।
5
दु:ख ना बुरा,
वरदान प्रभु का
समझो इसे ।
-0-
1
चुप रहता
आँसू बन बहता
मन का दु:ख ।
2
दु:ख में सदा
कोई ना होता साथी
सभी पराये।
3
दु:ख में भीगा
जब जब तकिया
तुम्हें पुकारूँ।
4
जीवन भर
दु:ख – सुख का नाता
साथ चलता।
5
दु:ख में डूबे
डूबते चले गए
पार ना हुए
दु:ख ना बुरा,
वरदान प्रभु का
समझो इसे ।…बहुत सुंदर
वंशस्थ गौतम जी को बधाई !!
दु:ख में भीगा
जब जब तकिया
तुम्हें पुकारुं।….सुंदर हाइकु
रेनु चंद्रा जी को बधाई !!
By: ऋता शेखर 'मधु' on फ़रवरी 27, 2013
at 4:06 अपराह्न
बहुत सुंदर हाइकु रेनु जी ….बधाई ।
By: V Gautam on फ़रवरी 27, 2013
at 10:19 अपराह्न
बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर हाइकु …दोनों हाइकुकारों को बहुत बधाई !!
By: ज्योत्स्ना शर्मा on फ़रवरी 27, 2013
at 10:41 अपराह्न
गौतम जी और रेनू चंद्रा जी, आप लिखते रहें – हम पढ़ते रहें और
आप का साथ देते हुए यही कह सकते हैं : ” दुःख या सुख /
सिक्के के दो पहलू / रोना – हँसना। ” बधाई स्वीकार करें !
By: सुभाष लखेड़ा on फ़रवरी 28, 2013
at 1:02 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया हाइकु।
गौतम जी, रेनू चंद्रा जी बधाई।
By: कृष्णा वर्मा on फ़रवरी 28, 2013
at 4:12 पूर्वाह्न
Dhukh ko bahut achchhe se prstut kiya hai…man dukhi sa ho gaya..
By: Dr.Bhawna on फ़रवरी 28, 2013
at 12:04 अपराह्न
अर्थपूर्ण, भावपूर्ण हाईकु !
वंशस्थ गौतम जी… सकारात्मक अभिव्यक्ति ! बहुत सुंदर!
रेनू चंद्रा जी… भीगी-भीगी अभिव्यक्ति… दिल को भिगो गयी! अतिसुंदर!
~सादर!!!
By: anita on मार्च 2, 2013
at 12:20 पूर्वाह्न
दुःख के हाइकु… पढना सुखद लगा. सभी हाइकु बहुत अर्थपूर्ण. सभी को बधाई.
By: jenny shabnam on मार्च 2, 2013
at 3:21 पूर्वाह्न