1
लगें रंगीन
काली स्याही में जन्मे
प्रेम के गीत ।
2
होंठो से बँधी
दिल की धडकन
है रसभरी ।
3
चाँदनी पूर्ण
यौवन का सागर
प्रिय सम्पूर्ण
4.
मैं क्या कहूँ ?
दरिया के पास हूँ
प्यासा ही रहूँ ?
–अरुण कुमार रुहेला
2-ग्रीष्म ऋतू का प्रारंभ
1
चैत की रात
बहती मस्त हवा 
महकी फिज़ाँ
2
ग्रीष्म पधारे
उमस -भरा दिन
मोहक रातें
3
उड़ती धूल 
मुरझा गए फूल
प्रचंड गर्मी
4
भली लगती
मलय -सुवासित
जल -तरंग ।
––सुरेश कुमार चौधरी , कोलकाता
लगें रंगीन
काली स्याही में जन्मे
प्रेम के गीत
just loved it…. Superb !
By: Manju Mishra on मार्च 31, 2012
at 11:09 पूर्वाह्न
लगें रंगीन
काली स्याही में जन्मे
प्रेम के गीत ।………..bahut sunder badhai arun kumar ji
चैत की रात
बहती मस्त हवा
महकी फिज़ाँ……………waah suresh ji hardik badhai sabhi hayuk bahut sunder lage
By: shashi purwar on अप्रैल 2, 2012
at 12:24 अपराह्न
आपके इस आशीर्वाद के लिए बहुत आभारी हूँ ।
By: arunruhela on अप्रैल 3, 2012
at 8:18 अपराह्न
हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद !
By: arunruhela on अप्रैल 3, 2012
at 8:21 अपराह्न