1
झरोखे बैठी
आँगन की चिरैया
पंखों को तोले।
2
गौरैया प्यारी
बसो इसी अँगना
खो न जाना
3
जी लूँगी मैं
कुछ पल खुशी के
तू जो फ़ुदके
4
पीपल कहे-
जल्दी आना बिटिया
राह तकूँ मैं
5
चुप -चुप है
क्यों बरगद बाबा
दाढ़ी है बढ़ी
6
गुलमोहर
सँभाले सुर्ख साड़ी
गिरे पंखुड़ी
7
लिए हाथों में
कलियों का गुच्छा
खड़ा बुराँश
8
किल्लोल करे
बलखाती सरिता
रुकूँ ना कभी
9
पहाड़ी राहें
ये सर्पीली सड़कें
दिल धड़के
10
ठंडी हवाएँ
चेहरा छू के कहे
मैं संग तेरे
11
हंसा-बादल
गगन -सरोवर
पंछी हैं नैन।
12
नन्हा सा पौधा
उगा है चट्टान में
आस जगाए
13
नेह -बन्धन
कभी टूटे ना यह
माँगू मैं दुआ
14
जाऊँगी कहाँ
कौन मेरा अपना
तुम्हारे सिवा
-0-
ताँका
भावों के दीप
यूँ.ही जलते रहें
मन – देहरी ,
जगमग रौशन
जहाँ हो तुम्हारा
-कमला निखुर्पा
-0-
मेघों की कूँची
१.
मेघ गरजा
टिप -टिप बरसा
मन हरषा
२.
पानी बरसा
सोंधी खुशबू उड़ी
धरती धुली
३..
वन में मोर
घटाएँ घनघोर
भावविभोर
४.
घटा है आती
बिजली चमकाती
शोर मचाती
५.
सह न सका
वाष्पकणों का बोझ
बरसा मेघ
६.
बहती धारा
सजाई बालकों ने
कागज़ी नाव
७.
प्रथम बूँद
आम की डाल पर
क्यों भूले पेंगे
८.
मेघों की कूँची
आकाश कैनवास
उकेरे चित्र
९.
ऋतु सावन
शंकर-सा पावन
हुलसा मन
१०.
हरी चूड़ियाँ
खनकी कलाइयाँ
सावन आया
११.
अम्बर -धरा
बँधे एक सूत्र में
बरसात में
१२.
छतरी तनी
नभ -धरा के बीच
नया आकाश
१३..
बारिश आती
महावर रचाती
गोरी शर्माती
१४.
भरे पोखर
मेढक टर- टर
गूँजा शहर
१५.
बारिश रुकी
पत्तों ने टपकाए
बूँद के मोती
१६.
दूर क्षितिज़
सतरंगी चुनर
इन्द्रधनुष
-0-
ॠता शेखर ‘मधु‘
नन्हा सा पौधा
उगा है चट्टान में
आस जगाए…
Bahut sunadar…
By: bhawna on जून 30, 2011
at 5:23 अपराह्न
पानी बरसा
सोंधी खुशबू उड़ी
धरती धुली…
Khubsurat….
By: bhawna on जून 30, 2011
at 5:25 अपराह्न
rim jhim sa excellent observation and expression
By: neelam kulshreshtha on जून 30, 2011
at 6:46 अपराह्न
Rita Shekhar ‘Madhu Ji
Aap ki meghon ki kucchi ke antargat ye haiku
bahut scientific hai.
सह न सका
वाष्पकणों का बोझ
बरसा मेघ
मेघों की कूची
आकाश केनवास
उकेरे चित्र|
भरे पोखर
मेढक टर टर
गूंजा शहर|
By: Ravi Ranjan on जुलाई 1, 2011
at 12:05 पूर्वाह्न
Nikhurpa ji
जी लूँगी मैं भी
कुछ पल खुशी के
तू जो फुदके
nanhi bitiya ki yaad dilati hai.
By: Ravi Ranjan on जुलाई 1, 2011
at 12:17 पूर्वाह्न
पीपल कहे-
जल्दी आना बिटिया
राह तकूँ मैं
ati sunder
नन्हा सा पौधा
उगा है चट्टान में
आस जगाए
sunder bhav
rachana
By: rachana on जुलाई 1, 2011
at 12:25 पूर्वाह्न
barish pr bahut sunder haiku hai man ko bhigote se
मेघों की कूँची
आकाश कैनवास
उकेरे चित्र
दूर क्षितिज़
सतरंगी चुनर
इन्द्रधनुष
bahut khub
rachana
By: rachana on जुलाई 1, 2011
at 12:28 पूर्वाह्न
लूँगी मैं
कुछ पल खुशी के
तू जो फ़ुदके
Aas ka daaman koi chode bhi to kyon. Bahut hi udti hui parvaaz kle liye daad
By: Devi Nangrani on जुलाई 1, 2011
at 3:15 पूर्वाह्न
कमला निखुर्पा जी,
ऋतु पर आधारित सभी हाइकु बहुत ही मनमोहक लगे….बहुत सारी बधाई..
ऋता शेखर मधु जी,
पावस ऋतु पर आद्धृत सभी हाइकु बहुत -बहुत सुन्दर व सार्थक हैं …..साधुवाद व शुभकामनाएँ…
डा. रमा द्विवेदी
By: ramadwivedi on जुलाई 3, 2011
at 2:31 पूर्वाह्न
सभी हाइकु बहुत अच्छे लगे। कम्बोज भाइ आपने जो हाइकु विधा के प्रचार प्रसार के लिये यत्न किये हैं वो सराहणीय हैं। मुझे लगता है कि आने वाले दिनो मे हर ब्लाग पर हाइकु की धूम होगी। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें।
By: nirmla.kapila on जुलाई 3, 2011
at 10:51 अपराह्न
बेहतर…
By: रवि कुमार on जुलाई 3, 2011
at 11:04 अपराह्न
उत्साहवर्धन के लिए आप सबको
बहुत बहुत धन्यवाद|
यहां पर स्थान देने के लिए
रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’ सर एवं
डा हरदीप संधु जी को बहुत- बहुत
धन्यवाद |
By: ऋता शेखर 'मधु' on जुलाई 4, 2011
at 12:14 पूर्वाह्न
वर्षा ऋतु बहुत खूबसूरती से संक्षेप में वर्णित हैं
By: Mandeep on जुलाई 4, 2011
at 2:45 पूर्वाह्न