Posted by: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | जून 24, 2011

गर्मी के हाइकु-8


15-ललित मावर

      1

पत्ता न हिले

पसरा है सन्नाटा

ध्यान योग है

2

बैरागी दिन

धूल लपेटे बैठे

धूनी रमाए

3

आग बरसे

जंगल में सन्नाटा

झिंगुर गाए

4

क्रुद्ध है सूर्य

दुबके बैठे प्राणी

छाँह डरी-सी

5

झोंके हैं लू के

बदहवास भागे

बदन फूँके !

6

अंगारे उगे

हरा जंगल जले

टेसू हैं खिले

7

रेत भभूत

नदिया -संन्यासिन

कंकड़ -माला

8

धरा तपती

सिन्धु सूखता जाता

पराये दर्द

9

तपन झेल

लाल-लाल हो गया

गुलमोहर

10

अमलतास

पीला पड़ गया है

मौसम देख

11

हवा उद्दण्ड

आँखों में धूल झोंके

लू मारे थपेड़े

121

ग्रीष्म के आते

पलाश जलता है,

पर  किससे

-0-

[वीणा मासिक  अंक 1002 ,जून-11 अंक से साभार ] इन्दौर

16-मुमताज-टीएच खान

1

वाह री गर्मी

स्कूलों की छुट्टियाँ

बच्चों की मौज

2

वाह री गर्मी

सजती महफिल

आमों के साथ

3

वाह री गर्मी

ठहाके हर ओर

नीम के नीचे

4

वाह री गर्मी

गरीब सोता खूब

पाँव फैलाके

5

वाह री गर्मी

रातें करे छोटी

बढ़े उजाला

-0-


प्रतिक्रियाएँ

  1. गरमी पर केन्द्रित ललित मावर के सभी हाइकु सशक्त हाइकु हैं। इन्हें प्रिंट से नेट पर लाकर आपने एक अच्छा कार्य किया है। अब ये उन पाठकों तक भी सहजता से पहुंच जाएंगे जिनको वीणा उपलब्ध नहीं होती। ऐसी अच्छी रचनाओं का नेट पर पुनर्प्रकाशन भी होता रहे तो बहुत अच्छा होगा।


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